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________________ ३१ - अध्ययन ७. प्रत्याख्यानभंग = बार-बार प्रत्याख्यान भंग करना । ८. गण परिवर्तन छह मास के अन्दर ही जल्दी-जल्दी गण से गणान्तर में जाना । ९. उदक लेप = एक मास में तीन बार नाभि या जंघा प्रमाण जल में प्रवेश कर नदी आदि पार करना । १०. मातृस्थान = एक मास में तीन बार मायास्थान सेवन करना । अर्थात् कृत अपराध को छुपा लेना ११. राजपिण्ड = राजपिण्ड ग्रहण करना । १२. आकुट्या हिंसा = जानबूझकर हिंसा करना । १३. आकुट्या मृषा = जानबूझकर झूठ बोलना । १४. आकुट्या अदत्तादान = जानबूझकर चोरी करना । १५. सचित्त पृथ्वी स्पर्श = जानबूझकर सचित्त पृथिवी पर बैठना, सोना, खड़े होना । १६. इसी प्रकार सचित्त जल से सस्निग्ध और सचित्त रजवाली पृथिवी, सचित्त शिला अथवा घुणों वाली लकड़ी आदि पर बैठना, सोना, कायोत्सर्ग आदि ४६५ करना । १७. जीवों वाले स्थान पर तथा प्राण, बीज, हरित, कीडी नगरा, लीलन-फूलन, पानी, कीचड़, और मकड़ी के जालों वाले स्थान पर बैठना, सोना, कायोत्सर्ग आदि करना । १८. जानबूझकर कन्द, मूल, छाल, प्रवाल, पुष्प, फूल, बीज तथा हरितकाय का भोजन करना । १९. वर्ष के अन्दर दस बार उदक लेप लगाना अर्थात् नदी पार करना । २०. वर्ष में दस मायास्थानों का सेवन करना । २१. जानबूझकर बार-बार सचित्त जल वाले हाथ से तथा सचित्त जल से लिप्त कड़छी आदि से दिया जाने वाला आहार ग्रहण करना । बाईस परीषह देखिए, उत्तराध्ययन का दूसरा परीषह अध्ययन सूत्रकृताग सूत्र के २३ अध्ययन प्रथम श्रुतस्कन्ध के सोलह अध्ययन सोलहवें बोल में बतला आए हैं। शेष द्वितीय श्रुतस्कन्ध के अध्ययन इस प्रकार हैं- १७. पौण्डरीक १८. क्रियास्थान १९. आहार परिज्ञा २० प्रत्याख्यान परिज्ञा २१. अनगार श्रुत २२. आर्द्रकीय २३. नालन्दीय । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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