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सूत्र ३-इमे खलु ते बावीसं परीसहा समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया, जो भिक्खू सोच्चा, नच्चा, जिच्चा, अभिभय, भिक्खायरियाए परिव्वयन्तो पुट्ठो नो विहन्नेज्जा, तं जहा
१ दिगिंछा-परीसहे २ पिवासा-परीसहे ३ सीय-परीसहे ४ उसिण-परीसहे ५ दंस-मसय-परीसहे ६ अचेल-परीसहे ७ अरइ-परीसहे ८ इत्थी-परीसहे ९ चरिया-परीसहे १० निसीहिया-परीसहे ११ सेज्जा-परीसहे १२ अक्कोस-परीसहे १३ वह-परीसहे १४ जायणा-परीसहे १५ अलाभ-परीसहे १६ रोग-परीसहे १७ तण-फास-परीसहे १८ जल्ल-परीसहे १९ सक्कार-पुरक्कार-परीसहे २० पन्ना-परीसहे २१ अन्नाण-परीसहे २२ दंसण-परीसहे
उत्तराध्ययन सूत्र वे बाईस परीषह ये हैं, जो कश्यप-गोत्रीय श्रमण भगवान् महावीर के द्वारा प्रवेदित हैं, जिन्हें सुनकर, जानकर, अभ्यास के द्वारा परिचित कर, पराजित कर भिक्षाचर्या के लिए पर्यटन करता हुआ मुनि, उनसे स्पृष्टआक्रान्त होने पर विचलित नहीं होता। वे इस प्रकार हैं :
१ क्षुधा परीषह २ पिपासा परीषह ३ शीत परीषह ४ उष्ण परीषह ५ दंश-मशक परीषह ६ अचेल परीषह ७ अरति परीषह ८ स्त्री परीषह ९ चर्या परीषह १० निषद्या परीषह ११ शय्या परीषह १२ आक्रोश परीषह १३ वध परीषह १४ याचना-परीषह १५ अलाभ परीषह १६ रोग परीषह १७ तृण-स्पर्श-परीषह १८ जल्ल परीषह १९ सत्कार-पुरस्कार-परीषह २० प्रज्ञा परीषह २१ अज्ञान परीषह २२ दर्शन परीषह
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