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२८- अध्ययन
केवल का अर्थ एक है, . पूर्ण है । अतः जो पूर्ण अनन्त ज्ञान है वह केवल
है
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ज्ञान
अवधि, मनः पर्याय और केवल ज्ञान ज्ञेय और ज्ञान के बीच में इन्द्रिय आदि के निमित्त (माध्यम) के बिना सीधे आत्मा से होते हैं, अत: यह प्रत्यक्ष ज्ञान हैं, जबकि मति और श्रुत इन्द्रियादि के निमित्त से होने के कारण परोक्ष हैं । अवधि, मन: पर्याय विकल- अपूर्ण प्रत्यक्ष हैं, और केवल ज्ञान सकल - पूर्ण प्रत्यक्ष है ।
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गाथा ६ – गुणों का आश्रय -- आधार द्रव्य है । जीव में ज्ञानादि अनन्त गुण हैं। अजीव पुद्गल में रूप, रस आदि अनन्त गुण हैं । धर्मास्तिकाय आदि में भी गतिहेतुता आदि अनन्त गुण हैं । द्रव्य का लक्षण सत् है । सत् का लक्षण उत्पाद, व्यय और धौव्य है । पर्याय दृष्टि से द्रव्य प्रतिक्षण उत्पन्न विनष्ट होता रहता है, और ध्रौव्यत्व गुण की दृष्टि से वह मूल स्वरूपतः त्रिकालाव- स्थायी है, शाश्वत है
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एक द्रव्य के आश्रित गुण होते हैं । अर्थात् जो द्रव्य के सम्पूर्ण भागों में और उसकी सम्पूर्ण अवस्थाओं में अनादि अनन्त रूप से सदा काल रहते हैं, वे गुण हैं। द्रव्य कभी निर्गुण नहीं होता । गुण स्वयं निर्गुण होते हैं । अर्थात् गुणों में अन्य गुण नहीं होते ।
गुणों के दो भेद हैं। अस्तित्व, वस्तुत्व, प्रमेयत्व आदि सामान्य गुण हैं, जो सामान्य रूप से प्रत्येक जीव- अजीव द्रव्यों में पाये जाते हैं । जीव में ज्ञान, दर्शन, चारित्र, सुख आदि विशेष गुण हैं, जो अजीव द्रव्य में नहीं होते । पुद्गल अजीव में रूप, रस गन्ध आदि विशेष गुण हैं, जो जीव द्रव्य में नहीं होते । प्रतिनियत गुण विशेष होते हैं ।
परिणमन अर्थात्, परिवर्तन को पर्याय कहते हैं । पर्याय द्रव्य और गुण दोनों में आश्रित है, अर्थात् होती है । गुणों में भी नव पुराणादि पर्याय प्रत्यक्षत: प्रतीयमान हैं। 'गुणेष्वपि नव-पुराणादि पर्याया: प्रत्यक्षप्रतीता एवं - सर्वार्थ सिद्धिवृत्ति ।'
सहभावी गुण होते हैं, और क्रमभावी पर्याय । एक समय में एक गुण की एक पर्याय ही होती है । एक साथ अनेक पर्याय कभी नहीं होतीं। वैसे अनन्त गुणों की दृष्टि से एक-एक पर्याय मिलकर एक साथ अनन्त पर्याय हो सकती हैं । क्रमभाविता एक गुण की अपेक्षा से है । पर्याय के मुख्यरूप से दो भेद हैं- व्यंजन पर्याय (द्रव्य के प्रदेशत्व गुण का परिणमन, विशेष कार्य) और अर्थपर्याय (प्रदेशत्व गुण के अतिरिक्त शेष सम्पूर्ण गुणों का परिणमन) । इनके दो भेद हैं स्वभाव और विभाव । पर के निमित्त के बिना जो परिणमन होता है वह स्वभाव पर्याय है । और परके निमित्त से जो होता है, वह विभाव पर्याय है ।
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