________________
२४-अध्ययन
४४५
२-६
४-६
ww
पादोन पुरुषी-पौन पौरुषी का छाया प्रमाण समय
पाद-अंगुल आषाढ़ पूर्णिमा श्रावण .. "
२-१० भाद्रपद "
३-४ आश्विन ,
३-८ कार्तिक ,
४-० मार्गशीर्ष ,,
४-६ पौष , माघ , फाल्गुन "
४-० चैत्र
३-८ वैशाख ,
३-४ ज्येष्ठ ,
२-१० गाथा १९-२०-रात्रि के चार भाग होते हैं—(१) प्रादोषिक अर्थात् रात्रि का मुख भाग, (२) अर्धरात्रिक, (३) वैरात्रिक और प्राभातिक। प्रादोषिक और प्राभातिक इन दो प्रहरों में स्वाध्याय किया जाता है। अर्धरात्रि में ध्यान और वैरात्रिक में शयनक्रिया-निद्रा।
अध्ययन २७ गाथा १–'गणधर' शब्द के प्रमुख अर्थ दो होते हैं—(१) तीर्थंकर भगवान् के प्रमुख शिष्य, जैसे कि भगवान् महावीर के गौतम आदि गणधर । (२) अनुपम ज्ञान आदि गुणों के धारक आचार्य । प्रस्तुत में दूसरा अर्थ ही अभीष्ट है।
___ कर्मोदय से अथवा शिष्यों द्वारा तोड़ी गई ज्ञानादिरूप भावसमाधि का पुन: अपने आप में जोड़ना, प्रतिसन्धान है।
अध्ययन २८ गाथा १-मोक्ष का मार्ग (उपाय, साधन, कारण) ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप है। उससे सिद्धि गमन रूप जो गति है, वह मोक्ष मार्ग गति है।
गाथा २–प्रस्तुत में ज्ञान को पहले रखा है, दर्शन को बाद में। लगता है, यह व्यवहार में अध्ययन, जानकारी आदि से सम्बन्धित ज्ञान है, जो सम्यग् दर्शन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org