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उत्तराध्ययन सूत्र टिप्पण
अध्ययन २१ गाथा २-“भगवान् महावीर के उपासक श्रावक भी व्यापार के लिए सुदूर द्वीपों की समद्रयात्रा करते थे।" यह प्रस्तुत गाथा पर से स्पष्टत: सचित होता है। इतना ही नहीं, विदेशी कन्याओं से विवाह सम्बन्ध भी उस समय निषिद्ध नहीं था।
पालित निर्ग्रन्थ प्रवचन का कोविद ही नहीं, विकोविद था, अर्थात् विशिष्ट विद्वान् था।
अध्ययन २२ गाथा ५-प्रवचन सारोद्धार वृत्ति (पत्र ४१०-११) में बताया है कि “शरीर के साथ उत्पन्न होने वाले छत्र, चक्र, अंकुश आदि रेखाजन्य जिह्न लक्षण कहे जाते हैं। साधारण मनुष्यों के शरीर में ३२, बलदेव-वासुदेव के १०८ और चक्रवर्ती तथा तीर्थंकर के १००८ लक्षण होते हैं।" आजकल गुरुजनों के नाम से पर्व १०८ या १००८ श्री का प्रयोग इन्हीं लक्षणों का सूचक है। ___ गाथा ६-शरीर के सन्धिअंगों की दोनों हड्डियाँ परस्पर आंटी लगाए हुए हों, उन पर तीसरी हड्डी का वेष्टन-लपेट हो, और चौथी हड्डी की कील उन तीनों को भेद रही हो, इस प्रकार का वज्र जैसा सुदृढ़ अस्थिबन्धन 'वज्र-ऋषम-नाराच' संहनन है।
पालथी मार कर बैठने पर जिस व्यक्ति के चारों कोण सम हों, वह 'सम-चतुरस्र' नामक सर्वश्रेष्ठ संस्थान है।
गाथा ८९-प्राचीनकाल में अन्तरीय-नीचे पहनने के लिए धोती और उत्तरीय-ऊपर ओढ़ने के लिए चादर, ये दो ही वस्त्र पहने जाते थे। 'दिव्य युगल' उसी का संकेत है।
गाथा १०-गन्धहस्ती सब हाथियों में श्रेष्ठ होता है। इसकी गन्ध से अन्य हाथी हतप्रभ–निर्वीर्य हो जाते हैं, भयभीत होकर भाग खड़े होते हैं।
गाथा ११-समुद्रविजय, अक्षोभ्य, वसुदेव आदि दस भाई थे। उनके समूह दो 'दसार चक्र' कहते थे। दसार के 'दसार' और 'दशाह'-दोनों रूप मिलते
गाथा १३-अन्धक और वृष्णि दो भाई थे। वृष्णि अरिष्ट नेमि के पितामह अर्थात् दादा होते थे। इनसे 'वृष्णिकुल' का प्रवर्तन हुआ। दशवैकालिक आदि के अनुसार दोनों भाइयों के नाम से 'अन्धक वृष्णिकुल' भी प्रसिद्ध था।
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