SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 447
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४१४ २३३. बावीसं सागराई कोसेठ भवे । अच्चुयम्मि जहन्त्रेणं सागरा इक्कवीसई || सागराई 1 उक्कोण ठिई भवे पढमम्मि जन्नेणं बावीसं सागरोवमा ॥ २३४. तेवीस २३५. चवीस सागराई उक्कोण ठिई भवे । बिइयम्मि जहनेणं तेवीसं सागरोवमा || सागराई उसे ठिई भवे । तइयम्मि जने चउवीसं सागरोवमा ।। २३६. पणवीस सागराई कोसेठ भवे । चडत्थम्मि जहन्त्रेणं सागरा पणुवीसई ॥ २३७. छव्वीस २३८. सागरा सत्तवीसं तु उक्कोण ठई भवे । पंचमम्मि जहन्नेणं सागरा उ छवीसई ॥ २३९. सागरा अट्ठवीसं तु उक्कोण ठिई भवे । छट्ठम्पि महन्त्रेणं सागरा सत्तवीसई ॥ Jain Education International उत्तराध्ययन सूत्र अच्युत देवों की आयु-स्थिति उत्कृष्ट बाईस सागरोपम, जघन्य इक्कीस सागरोपम है । प्रथम ग्रैवेयक देवों की उत्कृष्ट आयु- स्थिति तेईस सागरोपम, जघन्य बाईस सागरोपम है । द्वितीय ग्रैवेयक देवों की उत्कृष्ट आयु-स्थिति चौबीस सागरोपम, जघन्य तेईस सागरोपम है । तृतीय ग्रैवेयक देवों की उत्कृष्ट आयु- स्थिति पच्चीस सागरोपम, जघन्य चौबीस सागरोपम है । चतुर्थ ग्रैवेयक देवों की उत्कृष्ट आयु-स्थिति छब्बीस सागरोपम, जघन्य पच्चीस सागरोपम है । पंचम ग्रैवेयक देवों की उत्कृष्ट आयु- स्थिति सत्ताईस सागरोपम, जघन्य छब्बीस सागरोपम है । षष्ठ ग्रैवेयक देवों की उत्कृष्ट आयु- स्थिति अट्ठाईस सागरोपम, और जघन्य सत्ताईस सागरोपम है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy