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२३३. बावीसं
सागराई कोसेठ भवे । अच्चुयम्मि जहन्त्रेणं
सागरा इक्कवीसई ||
सागराई
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उक्कोण ठिई भवे पढमम्मि जन्नेणं बावीसं सागरोवमा ॥
२३४. तेवीस
२३५. चवीस सागराई उक्कोण ठिई भवे ।
बिइयम्मि जहनेणं तेवीसं सागरोवमा ||
सागराई
उसे ठिई भवे । तइयम्मि जने चउवीसं सागरोवमा ।।
२३६. पणवीस
सागराई
कोसेठ भवे । चडत्थम्मि जहन्त्रेणं सागरा पणुवीसई ॥
२३७. छव्वीस
२३८. सागरा सत्तवीसं तु उक्कोण ठई भवे । पंचमम्मि जहन्नेणं सागरा उ छवीसई ॥
२३९. सागरा अट्ठवीसं तु उक्कोण ठिई भवे । छट्ठम्पि महन्त्रेणं सागरा सत्तवीसई ॥
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उत्तराध्ययन सूत्र
अच्युत देवों की आयु-स्थिति उत्कृष्ट बाईस सागरोपम, जघन्य इक्कीस सागरोपम है ।
प्रथम ग्रैवेयक देवों की उत्कृष्ट आयु- स्थिति तेईस सागरोपम, जघन्य बाईस सागरोपम है ।
द्वितीय ग्रैवेयक देवों की उत्कृष्ट आयु-स्थिति चौबीस सागरोपम, जघन्य तेईस सागरोपम है ।
तृतीय ग्रैवेयक देवों की उत्कृष्ट आयु- स्थिति पच्चीस सागरोपम, जघन्य चौबीस सागरोपम है ।
चतुर्थ ग्रैवेयक देवों की उत्कृष्ट आयु-स्थिति छब्बीस सागरोपम, जघन्य पच्चीस सागरोपम है ।
पंचम ग्रैवेयक देवों की उत्कृष्ट आयु- स्थिति सत्ताईस सागरोपम, जघन्य छब्बीस सागरोपम है ।
षष्ठ ग्रैवेयक देवों की उत्कृष्ट आयु- स्थिति अट्ठाईस सागरोपम, और जघन्य सत्ताईस सागरोपम है ।
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