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________________ ३६ - जीवाजीव - विभक्ति २२६. दस चेव सागराई उक्कोण ठिई भवे । बम्भलोए जहन्त्रेणं सत्त ऊ सागरोवमा ॥ सागराई उक्कोण ठिई श्रवे । लन्तगम्मि जहन्त्रेणं दस ऊ सागरोवमा | २२७. चउद्दस सागराई 1 उक्कण ठई भवे महासुक्के जहन्त्रेणं चउद्दस सागरोवमा || २२८. सत्तरस सागराई उक्कोसेण ठिई भवे । सहस्सारे जहणं सत्तरस सागरोवमा | २२९. अट्ठारस २३०. सागरा अउणवीसं तु उक्कोसेण ठिई भवे । आणयम्मि जहन्नेणं अट्ठारस सागरोवमा || २३१. वीसं तु सागराई उक्कोण ठिई भवे । पाणयम्मि जहन्त्रेणं सागरा अडणवीसई ॥ २३२. सागरा इक्कवीसं तु उक्कोण ठिई भवे । आरणम्मि जहन्त्रेणं वीसई सागरोवमा ॥ Jain Education International ४१३ ब्रह्मलोक देवों की आयु-स्थिति उत्कृष्ट दस सागरोपम और जघन्य सात सागरोपम है । लान्तक देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति चौदह सागरोपम, जघन्य दस सागरोपम है । महाशुक्र देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति सतरह सागरोपम, और जघन्य चौदह सागरोपम है । सहस्रार देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति अठारह सागरोपम, जघन्य सतरह सागरोपम है । आनत देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति उन्नीस, सागरोपम, जघन्य अठारह सागरोपम है 1 प्राणत देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति बीस सागरोपम और जघन्य उस सागरोपम है । आरण देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति इक्कीस सागरोपम, जघन्य बीस सागरोपम है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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