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१-विनय-श्रुत ३१. कालेण निक्खमे भिक्खू
कालेण य पडिक्कमे। अकालं च विवज्जित्ता काले कालं समायरे ।।
३२. परिवाडीए न चिद्वेज्जा
भिक्खू दत्तेसणं चरे। पडिरूवेण एसित्ता मियं कालेण भक्खए॥
३३. नाइदूरमणासन्ने
नन्नेसि चक्खु-फासओ। एगो चिट्ठज्ज भत्तट्ठा लंधिया तं नइक्कमे ।।
भिक्षु समय पर भिक्षा के लिए निकले और समय पर लौट आए। असमय में कोई कार्य न करे। जो कार्य जिस समय करने का हो, उस को उसी समय पर करे।
भिक्षा के लिए गया हुआ भिक्षु, खाने के लिए उपविष्ट लोगों की पंक्ति में न खड़ा रहे । मुनि की मर्यादा के
अनुरूप एषणा करके गृहस्थ के द्वारा दिया हुआ आहार स्वीकार करे और शास्त्रोक्त काल में आवश्यकतापूर्तिमात्र परिमित भोजन करे।
यदि पहले से ही अन्य भिक्षु गृहस्थ के द्वार पर खड़े हों तो उनसे अति दूर या अति समीप खड़ा न रहे और न देने वाले गृहस्थों की दृष्टि के सामने ही रहे, किन्तु एकान्त में अकेला खड़ा रहे । उपस्थित भिक्षुओं को लांघ कर घर में भोजन लेने को न जाए।
संयमी मुनि प्रासुक-अचित्त और परकृत-गृहस्थ के लिए बनाया गया आहार ले, किन्तु बहुत ऊँचे या बहुत नीचे स्थान से लाया हुआ तथा अति समीप या अति दूर से दिया जाता हुआ आहार न ले। ___ संयमी मुनि प्राणी और बीजों से रहित, ऊपर से ढके हुए और दीवार आदि से संवृत मकान में अपने सहधर्मी साधुओं के साथ भूमि पर न गिराता हुआ विवेकपूर्वक आहार करे ।
३४. नाइउच्चे व नीए वा
नासन्ने . नाइदूरओ। फास्यं परकडं पिण्डं पडिगाहेज्ज संजए।
३५. अप्पपाणेऽप्पबीयंमि
पडिच्छन्नंमि संवुडे। समयं संजए भुंजे जयं अपरिसाडियं ॥
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