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पणतीसइमं अज्झयणं : पंचत्रिंश अध्ययन
अणगारमग्गगई: अनगार-मार्ग-गति
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हिन्दी अनुवाद मुझ से ज्ञानियों द्वारा उपदिष्ट मार्ग को एकाग्र मन से सुनो, जिसका आचरण कर भिक्षु दुःखों को अन्त करता है।
गृहवास का परित्याग कर प्रवजित हुआ मुनि, इन संगों को जाने, जिनमें मनुष्य आसक्त-प्रतिबद्ध होते हैं।
१. सुह मेगग्गमणा
मग्गं बद्धेहि देसियं। जमायरन्तो भिक्ख दुक्खाणऽन्तकरो भवे॥ गिहवासं परिच्चंज्ज पवज्जंअस्सिओ मुणी। इमे संगे वियाणिज्जा
जेहिं सज्जन्ति माणवा॥ ३. तहेव हिंसं अलियं
चोज्जं अबम्भसेवणं। इच्छाकामं च लोभं च
संजओ परिवज्जए। ४. मणोहरं चित्तहरं
मल्लधूवेण वासियं। सकवाडं पण्डुरुल्लोयं
मणसा वि न पत्थए॥ ५. इन्दियाणि उ भिक्खुस्स
तारिसम्मि उवस्सए। दुक्कराई निवारे कामरागविवड्डणे॥
संयत भिक्षु हिंसा, झूठ, चोरी, अब्रह्मचर्य, इच्छा-काम (अप्राप्त वस्तु की आकांक्षा) और लोभ से दूर रहे।
मनोहर चित्रों से युक्त, माल्य और धूप से सुवासित, किवाड़ों तथा सफेद चंदोवा से युक्त-ऐसे चित्ताकर्षक स्थान की मन से भी इच्छा न करे।
काम-राग को बढ़ाने वाले इस प्रकार के उपाश्रय में इन्द्रियों का निरोध करना भिक्षु के लिए दुष्कर है।
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