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तीसइमं अज्झयणं : त्रिंश अध्ययन
तवमग्गगई : तपो-मार्ग-गति
हिन्दी अनुवाद भिक्षु राग और द्वेष से अर्जित पाप-कर्म का तप के द्वारा जिस पद्धति से क्षय करता है, उस पद्धति को तुम एकाग्र मन से सुनो।
प्राण-वध, मृषावाद, अदत्त, मैथुन, परिग्रह और रात्रि भोजन की विरति से जीव अनाश्रव-आश्रव-रहित होता है।
मूल जहा उ पावगं कम्म राग-दोससमज्जियं। खवेइ तवसा भिक्खू तमेगग्गमणो सुण ।। पाणवह-मुसावाया अदत्त-मेहुण-परिग्गहा विरओ। राईभोयणविरओ जीवो भवइ अणासवो॥ पंचसमिओ तिगुत्तो अकसाओ जिइन्दिओ। अगारवो य निस्सल्लो जीवो होइ अणासवो॥ एएसिं तु विवच्चासे राग-द्दोससमज्जियं। जहा खवयइ भिक्खू तं मे एगमणो सुण ।। जहा महातलायस्स सन्निरुद्ध जलागमे। उस्सचिणाए तवणाए कमेणं सोसणा भवे॥
___ पाँच समिति और तीन गप्ति सेसहित, कषाय से रहित, जितेन्द्रिय, निरभिमानी, निःशल्य जीव अनाश्रव होता है।
उक्त धर्म-साधना से विपरीत आचरण करने पर राग-द्वेष से अर्जित कर्मों को भिक्षु, किस प्रकार क्षीण करता है, उसे एकाग्र मन से सुनो।
किसी बड़े तालाब का जल, जल आने के मार्ग को रोकने से, पहले के जल को उलीचने से और सूर्य के ताप से क्रमश: जैसे सूख जाता है
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