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________________ २९ सम्यक्त्व- पराक्रम प्रश्न है, किस बिन्दु से साधना प्रारम्भ करें-संवेग से ? धर्म - श्रद्धा से? अथवा स्वाध्याय से ? उत्तर है ? किसी भी सम्यक् बिन्दु से प्रारम्भ की हुई साधना साध्य की परम ऊँचाई को प्राप्त कराती । क्योंकि भीतर में साधना की जड़ें प्रत्येक महानता से जुड़ी हुई हैं। एक सहज जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि संयम, स्वाध्याय, त्याग, संवेग, धर्म श्रद्धा, आलोचना आदि से जीव को क्या प्राप्त होता है ? इनके उद्देश्य क्या हैं ? प्रस्तुत अध्ययन में उक्त विषयों से सम्बन्धित ७१ प्रश्न और उनके समाधान दिए गए हैं । प्रायः उत्तराध्ययन में चर्चित सभी विषयों पर प्रश्न हैं । अतः कहा जा सकता है कि उत्तराध्ययन में प्ररूपित सम्पूर्ण विषयों का संकलन एक तरह से इस अध्ययन में समाहित है । प्रत्येक विषय की सूक्ष्म चिन्तन के साथ गंभीर चर्चा की गई है । प्रत्येक प्रश्न और उसका समाधान आध्यात्मिक भाव की दिशा में एक स्वतन्त्र विषय है । प्रश्न छोटे हैं, सूत्रात्मक हैं । उत्तर भी छोटे हैं, किन्तु गंभीर हैं, वैज्ञानिक हैं । जैसे कि प्रश्न है— संवेग से जीव को क्या प्राप्त होता है ? संवेग का साक्षात् सीधा प्रत्यक्ष में कोई फल नहीं बताया है, किन्तु उसके फल की परम्परा का एक दीर्घ चक्र वर्णित है। पूर्व के प्रति उत्तर कार्य और उत्तर के प्रति पूर्व कारण बनता है। इस प्रकार दोनों में कार्य-कारण भाव है । इस प्रकार संवेग की फलश्रुति बहुत गहराई में जाकर स्पष्ट होती है । जैसे— • संवेग से धर्मश्रद्धा आती है । Jain Education International २९५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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