________________
२८-मोक्ष-मार्ग-गति
२८९
६. गुणाणमासओ दव्वं .
एगदव्वस्सिया गुणा। लक्खणं पज्जवाणं तु। उभओ अस्सिया भवे ॥
द्रव्य गुणों का आश्रय है, आधार है। जो प्रत्येक द्रव्य के आश्रित रहते हैं, वे गुण होते हैं। पर्यव अर्थात् पर्यायों का लक्षण दोनों के अर्थात् द्रव्य और गुणों के आश्रित रहना है।
वरदर्शी जिनवरों ने धर्म, अधर्म, आकाश, काल, पुदगल और जीव-यह छह द्रव्यात्मक लोक कहा है।
धम्मो अहम्मो आगासं कालो पुग्गल-जन्तवो। एस लोगो त्ति पन्नत्तो जिणेहिं वरदंसिहि ।। धम्मो अहम्मो आगासं दव्वं इक्किक्कमाहियं। अणन्ताणि य दव्वाणि कालो पुग्गल-जन्तवो॥ गइलक्खणो उ धम्मो अहम्मो ठाणलक्खणो। भायणं सव्वदव्वाणं नहं ओगाहलक्खणं॥
धर्म, अधर्म और आकाश-ये तीनों द्रव्य संख्या में एक-एक हैं। काल, पुद्गल और जीव-ये तीनों द्रव्य अनन्त-अनन्त हैं।
गति (गति में हेतुता) धर्म का लक्षण है, स्थिति (स्थिति होने में हेतु) __ अधर्म का लक्षण है, सभी द्रव्यों का
भाजन (आधार) अवगाहलक्षण आकाश
१०. वत्तणालक्खणो कालो
जीवो उवओगलक्खणो। नाणेणं दंसणेणं च सुहेण य दुहेण य॥
वर्तना (परिवर्तन) काल का लक्षण है। उपयोग (चेतनाव्यापार) जीव का लक्षण है, जो ज्ञान (विशेष बोध), दर्शन (सामान्य बोध), सुख और दुःख से पहचाना जाता है।
ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, वीर्य और उपयोग–ये जीव के लक्षण हैं।
११. नाणं च दंसणं चेव
चरितं च तवो तहा। वीरियं उवओगो य
एयं जीवस्स लक्खणं॥ १२. सद्दऽन्धयार-उज्जोओ
पहा छायाऽऽतवे इ वा। वण्ण-रस-गन्ध-फासा पुग्गलाणं तु लक्खणं॥
__ शब्द, अन्धकार, उद्योत, प्रभा, छाया, आतप, वर्ण, रस, गन्ध और स्पर्श—ये पुद्गल के लक्षण हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org