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________________ २७० उत्तराध्ययन सूत्र गमणे आवस्सियं कुज्जा ठाणे कुज्जा निसीहियं। आपुच्छणा सयंकरणे परकरणे पडिपुच्छणा। (१) अपने ठहरने के स्थान से बाहर निकलते समय “आवस्सियं” का उच्चारण करना, 'आवश्यकी' सामाचारी है। (२) अपने स्थान में प्रवेश करते समय “निस्सिहियं” का उच्चारण करना, 'नषेधिकी' सामाचारी है। (३) अपने कार्य के लिए गुरु से अनुमति लेना, 'आपृच्छना' सामाचारी छन्दणा दव्वजाएणं इच्छाकारो य सारणं। मिच्छाकारो य निन्दाए तहक्कारो य पडिस्सुए। (४) दूसरों के कार्य के लिए गुरु से अनुमति लेना 'प्रतिपृच्छना' सामाचारी है। (५) पूर्वगृहीत द्रव्यों के लिए गुरु आदि को आमन्त्रित करना, 'छन्दना' सामाचारी है। (६) दूसरों का कार्य अपनी सहज अभिरुचि से करना और अपना कार्य करने के लिए दूसरों को उनकी इच्छानुकूल विनम्र निवेदन करना, 'इच्छाकार' सामाचारी है। (७) दोष की निवृत्ति के लिए आत्मनिन्दा करना, 'मिथ्याकार' सामाचारी है। (८) गुरुजनों के उपदेश को स्वीकार करना, 'तथाकार' सामाचारी अब्भुट्ठाणं गुरुपूया अच्छणे उवसंपदा। एवं दु-पंच-संजुत्ता सामायारी पवेइया । (९) गुरुजनों की पूजा अर्थात् सत्कार के लिए आसन से उठकर खड़ा होना, 'अभ्युत्थान' सामाचारी है। (१०) किसी विशिष्ट प्रयोजन से दूसरे आचार्य के पास रहना, 'उपसम्पदा' सामाचारी है। इस प्रकार दशांग-समाचारी का निरूपण किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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