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उत्तराध्ययन सूत्र
२२. सच्चा तहेव मोसा य
सच्चामोसा तहेव य। चउत्थी असच्चमोसा वइगुत्ती चउव्विहा ।
वचन गुप्तिवचन गुप्ति के चार प्रकार हैंसत्य मृषा सत्यामृषा चौथी असत्यामृषा
यतना-संपन्न यति संरम्भ, समारम्भ और आरम्भ में प्रवर्तमान वचन का निवर्तन करे।
२३. संरम्भ-समारम्भे
आरम्भे य तहेव य। वयं पवत्तमाणं तु नियतेज्ज जयं जई॥
२४. ठाणे निसीयणे चेव
तहेव य तुयट्टणे। उल्लंघण-पल्लंघणे इन्दियाण य जुंजणे॥ संरम्भ-समारम्भे आरम्भम्मि तहेव य। कायं पवत्तमाणं तु नियतेज्ज जयं जई॥
काय गुप्ति
खड़े होने में, बैठने में, त्वगवर्तन में लेटने में, उल्लंघन में-गर्त आदि के लाँघने में, प्रलंघन में सामान्यतया चलने-फिरने में, शब्दादि विषयों में, इन्द्रियों के प्रयोग में
संरम्भ में, समारम्भ में और आरम्भ में प्रवृत्त काया का निवर्तन करे।
२५.
२६. एयाओ पंच समिईओ
चरणस्स य पवत्तणे। गुत्ती नियत्तणे वुत्ता असुभत्येसु सव्वसो॥
समिति गुप्ति का लक्षण
ये पाँच समितियाँ चारित्र की प्रवृत्ति के लिए हैं। और तीन गुप्तियाँ सभी अशुभ विषयों से निवृत्ति के लिए
२७. एया पवयणमाया
जे सम्मं आयरे मुणी। से खिणं सव्वसंसारा विप्पमुच्चइ पण्डिए॥
-ति बेमि
उपसंहार
जो पण्डित मुनि इन प्रवचनमाताओं का सम्यक् आचरण करता है, वह शीघ्र ही सर्व संसार से मुक्त हो जाता है।
-ऐसा में कहता हूँ।
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