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________________ २३६ उत्तराध्ययन सूत्र उन लोक-प्रदीप भगवान् वर्द्धमान के विद्या और चारित्र के पारगामी, महान् यशस्वी भगवान् गौतम शिष्य थे। ६. तस्स लोगपईवस्स आसि सीसे महायसे। भगवं गोयमे नाम विज्जा - चरणपारगे॥ बारसंगविऊ बुद्धे सीस-संघ- समाउले। गामाणुगाम रीयन्ते से वि सावस्थिमागए। ८. कोट्टगं नाम उज्जाणं तम्मी नयरमण्डले। फासुए सिज्जसंथारे तत्थ वासमुवागए। केसीकुमार - समणे गोयमे य . महायसे। उभओ वि तत्थ विहरिंसु अल्लीणा सुसमाहिया॥ बारह अंगों के वेत्ता, प्रबुद्ध गौतम भी शिष्य-संघ से परिवृत ग्रामानुग्राम विहार करते हुए श्रावस्ती नगरी में आए। नगर के निकट कोष्ठक-उद्यान में, जहाँ प्रासुक शय्या, एवं संस्तारक सुलभ थे, ठहर गए। कुमारश्रमण केशी और महान यशस्वी गौतम–दोनों वहाँ विचरते थे। दोनों ही आलीन—आत्म-लीन और सुसमाहित-सम्यक् समाधि से युक्त थे। संयत, तपस्वी, गुणवान् और षटकाय के संरक्षक दोनों शिष्य-संघों में यह चिन्तन उत्पन्न हुआ १०. उभओ सीससंघाणं संजयाणं तवस्सिणं। तत्थ चिन्ता समुप्पन्ना गुणवन्ताण ताइणं ॥ ११. केरिसो वा इमो धम्मो? इमो धम्मो व केरिसो?। आयारधम्मपणिही इमा वा सा व केरिसी? ॥ १२. चाउज्जामो य जो धम्मो जो इमो पंचसिक्खिओ। देसिओ वद्धमाणेण पासेण य महामणी।। ___-"यह कैसा धर्म है? और यह कैसा धर्म है? आचार धर्म की प्रणिधि-व्यवस्था यह कैसी है और यह कैसी है?” –“यह चातुर्याम धर्म है, इसका प्रतिपादन महामुनि पार्श्वनाथ ने किया है। और यह पंच-शिक्षात्मक धर्म है, इसका महामुनि वर्द्धमान ने प्रतिपादन किया है।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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