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२१ - समुद्रपालीय
महेसी
चरिउं धम्मसंचयं ।
२३. सन्नाणनाणोवगए अणुत्तरं अणुत्तरे नाणधरे ओभासई सूरिए वऽन्तलिक्खे ॥
जसंसी
२४. दुविहं खवेऊण य पुण्णपावं निरंगणे सव्वओ विप्पमुक्के । तरित्ता समुद्दे व महाभवोघं समुद्दपाले अपुणागमं गए ।
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त्ति बेमि ॥
२२१
करके
अनुत्तर धर्म-संचय का आचरण सद्ज्ञान से ज्ञान को प्राप्त करने वाला, अनुत्तर ज्ञानधारी, यशस्वी महर्षि, अन्तरिक्ष में सूर्य की भाँति धर्म-संघ में प्रकाशमान होता है ।
समुद्रपाल मुनि पुण्यपाप (शुभअशुभ) दोनों ही कर्मों का क्षय करके संयम में निरंगन - निश्चल, और सब प्रकार से मुक्त होकर समुद्र की भाँति विशाल संसार - प्रवाह को तैर कर मोक्ष में गए ।
- ऐसा मैं कहता हूँ ।
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