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________________ अन्तर के बोल -उपाध्याय अमरमुनि भारतीय वाङ्मय की प्रमुख चिन्तन धारा, त्रिपथगा गंगा की भाँति वैदिक, जैन और बौद्ध-परम्परा के रूप में, तीन धाराओं में प्रवाहित है। भारतीय तत्त्व द्रष्टा ऋषि-मुनियों एवं अध्येता विद्वानों का पुराकालीन वह तत्त्व ज्ञान, जिसने हजारों वर्षों से भारतीय जनजीवन को आध्यात्मिक एवं नैतिक आदर्शों की तथा आत्मोत्थान एवं समाजोत्थान के कर्तव्य कर्मों की प्रेरणा दी है, वह इन्हीं तीनों परम्पराओं के प्राक्तन साहित्य में उपलब्ध है। भारत की तत्कालीन पवित्र एवं निर्मल आत्मा के दर्शन यदि हम आज कर सकते हैं, तो यहीं कर सकते हैं, अन्यत्र नहीं। वैदिक ब्राह्मणधर्म में वेदों का तथा बौद्धधर्म में त्रिपिटक का जो गौरवशाली महत्त्वपूर्ण स्थान है, वही जैन धर्म में आगमसाहित्य का है। समवायांग सूत्र में आचारांग आदि १२ अंग शास्त्रों का तो 'गणिपिटक' के नाम से गौरवपूर्ण उल्लेख हुआ है। समवायांग सूत्र के टीकाकार आचार्य अभयदेव ने 'गणिपिटक' का अर्थ किया है-"गणी अर्थात् गणधर आचार्यों का, पिटक अर्थात् धर्मरूप निधि के रखने का पात्र ।" इसका अर्थ है-अंग साहित्य में धर्म का विशाल ज्ञानकोष सुरक्षित है। अंगशास्त्रों से इतर आगमों में भी 'गणिपिटक' का उक्त अर्थ समाहित है। उनमें भी जैन तत्त्व ज्ञान का वह अक्षय कोष है, जो साधक के अन्तरंग में तरंगित होने वाली जिज्ञासाओं का योग्य समाधान प्रस्तुत करता है। अंग और अंगबाह्य जैन आगम साहित्य का सर्वप्रथम 'अंग' और 'अंगबाह्यरूप' में दो प्रकार से विभाजन हुआ है। जिनदास महत्तरकृत नन्दीचूर्णि, तत्त्वार्थराजवार्तिक आदि के अनुसार अंग शास्त्र वे हैं, जो अर्थरूप में जिनभाषित हैं तथा शब्दसूत्र के रूप में गणधरों द्वारा ग्रथित हैं ।२ तीर्थंकर महावीर ने आचारांग आदि शास्त्रों के नामोल्लेख १. नन्दीसूत्र, तत्त्वार्थसूत्र आदि। २. भगवदर्हन्सर्वज्ञहिमवत्रिर्गतवाग्गङ्गाऽर्थविमलसलिलप्रक्षालिन्तान्त:करणैः बुद्ध यतिशयर्द्धियुक्तैर्गणधरैरनुस्मृतग्रन्थरचनम् आचारादिद्वादशविधमङ्गप्रविष्टमित्युच्यते। -तत्त्वार्थवार्तिक १।२०।१२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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