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________________ १५६ तं कहमिति चे ? आयरियाह- निग्गन्थस्स खलु इत्थीणं कुडुन्तरंसि वा, दूसन्तरंसि वा, भित्तन्तरंसि वा, कुइयसहंवा, रुड्यसद्दंवा, गीयसद्दं वा, हसियसद्दं वा, थणियसद्दं वा, कन्दियसद्दं वा, विलवियसद्दं वा, सुणेमाणस्स भयारिस्स बम्भचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालिय वा रोगायकं हवेज्जा, केवलपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा ! तम्हा खलु निग्गन्थे नो इत्थीणं कुडुन्तरंसि वा, दूसन्तरंसि वा, भित्तन्तरंसि वा, कुइयसद्दं वा, रुइयसद्दं वा, गीयसद्दं वा, हसियसद्दं वा थणियसद्दं वा, कन्दियसद्दं वा, विलवियसद्दं वा सुणेमाणे विहरेज्जा । सूत्र ८ - नो निग्गन्थे पुव्वरयं, पुव्वकीलियं अणुसरित्ता हवइ, से निग्गन्थे । तं कहमिति चे ? आयरियाह- निग्गन्थस्स खलु पुव्वरयं पुव्वकीलियं अणुसरमाणस बम्भयारिस्स बंभचेरे संका वा, Jain Education International उत्तराध्ययन सूत्र ऐसा क्यों ? आचार्य कहते हैं—- मिट्टी की दीवार के अन्तर से परदे के अन्तर से, अथवा पक्की दीवार के अन्तर से, स्त्रियों के कूजन, रोदन, गीत, हास्य, गर्जन, आक्रन्दन या विलाप के शब्दों को सुनता है, उस ब्रह्मचारी निर्ग्रन्थ को ब्रह्मचर्य के विषय में शंका, कांक्षा या विचिकित्सा उत्पन्न होती है, अथवा ब्रह्मचर्य का विनाश होता है, अथवा उन्माद पैदा होता है, अथवा दीर्घकालिक रोग और आतंक होता है, अथवा वह केवली - कथित धर्म से भ्रष्ट हो जाता है । अत: निर्ग्रन्थ मिट्टी की दीवार के अन्तर से परदे के अन्तर से स्त्रियों के कूजन, रोदन, गीत हास्य, गर्जन, आक्रन्दन या विलाप के शब्दों कोन सुने । जो संयम ग्रहण से पूर्व की रति और क्रीड़ा का अनुस्मरण नहीं करता है, वह निर्ग्रन्थ है । ऐसा क्यों ? आचार्य कहते हैं— जो संयम ग्रहण से पूर्व की रति का, क्रीड़ा का अनुस्मरण करता है, उस ब्रह्मचारी निर्ग्रन्थ को ब्रह्मचर्य के विषय में For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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