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सभिक्षुक
कौन भिक्षु है ? भिक्षु क्या करता है ? भिक्षु क्या मानता है ?
जो व्यक्ति विषयों से निरासक्त होकर एक मात्र मुक्तिलाभ के लिए भिक्षु बना है, उसका जीवन सामाजिक सुख-सुविधाओं से मान्यताओं एवं धारणाओं से एकदम भिन्न होता है ।
सबसे प्रथम वह निर्भय होता है । वह किसी से कभी डरता नहीं है । नः सम्मान और प्रतिष्ठा से इतराता है । वह अपने जीवन के निर्वाह के लिए मन्त्र-तन्त्र आदि विद्याओं का भी उपयोग नहीं करता है। उसके मन में अमीर और गरीब का भेद भी नहीं होता है । वह मुक्त मन से सभी घरों में समान भाव से भिक्षा के लिए है । साधारण निर्धन घरों से नीरस भिक्षा प्राप्त होने पर निन्दा नहीं करता है, और सम्पन्न घरों से सरस आहार मिलने पर प्रशंसा भी नहीं करता है । भिक्षा लेने के बाद गृहस्थ को धन्यवाद नहीं देता है । न कृतज्ञता ज्ञापन के लिए ही कुछ कहता है । वह निरन्तर एकरस अपनी साधना की मस्ती में और स्व की खोज में लगा रहता है।
आता
वह उन लोगों से दूर रहता है, जिनसे उसके लक्ष्य की पूर्ति में बाधा आती हो । वह व्यर्थ के लोक-व्यवहार और सम्पर्क से सर्वथा अलग रहकर सीमित, संयमित और जागृति- पूर्ण जीवन जीता है। इस प्रकार का जीवन जीने वाला 'भिक्षु' होता है । निन्दा और स्तुति से मुक्त, राग और द्वेष से उपरत विशिष्ट सर्वोत्तम स्वलक्ष्य की दिशा में ही उसकी जीवन की मंगलयात्रा होती है । भिक्षु के संयमी जीवन की यह वास्तविक संहिता है 1
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