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इषुकारीय
पूर्व जीवन के संस्कार वर्तमान के आवरणों को तोड़ देते हैं । उन्हें कोई रोक नहीं सकता ।
कुरुक्षेत्र प्रदेश में बहुत पहले कभी एक 'इषुकार' नगर था। नगर के राजा का नाम भी 'इषुकार' था । उसकी पत्नी कमलावती थी ।
इषुकार नगर में भृगु नामक राज पुरोहित रहते थे । उनकी पत्नी यशा थी । उसका वशिष्ठ कुल में जन्म हुआ था, अतः उसे वाशिष्ठी कहते थे । इन्हें कोई सन्तान नहीं थी । वंश किस प्रकार चलेगा, बस, इसी एक चिन्ता में उनका समय निकल रहा था। एक बार दो देव, जिनका जन्म यशा और भृगु पुरोहित के यहाँ होना था, उन्होंने श्रमणवेश में आकर यशा को बताया कि – “तुम चिन्ता मत करो । तम्हें दो पुत्र होंगे, किन्तु वे बचपन में ही दीक्षा ग्रहण कर लेंगे ।”
अपनी भविष्यवाणी के अनुसार दोनों देवों ने भृगु पुरोहित के यहाँ पुत्रों के रूप में जन्म लिया। वे बहुत सुन्दर थे । यशा उन्हें देखकर प्रसन्न थी, किन्तु मन में यह भय भी समाया था कि भविष्यवाणी के अनुसार कहीं दोनों दीक्षा न ले लें ? अत: वह अपने अल्पवयस्क पुत्रों के मन में समय-समय पर साधुओं के प्रति भय की भावना पैदा करती रहती थी । उन्हें समझाती रहती कि - " साधुओं के पास मत जाना। वे छोटे बच्चों को उठाकर ले जाते हैं, उन्हें मार देते हैं । और तो क्या, उनसे बात भी मत करना । " माँ की इस शिक्षा के फलस्वरूप दोनों बालक साधुओं से डरते रहते, उनके पास तक न जाते ।
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