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________________ चित्र-सम्भूतीय विशुद्ध अध्यात्मचेतना के बल पर ही कर्म-बंधन से मुक्ति हो सकती है। साकेत के राजा मुनिचन्द्र, सागरचन्द्र मुनि के पास दीक्षित हुए। विहार करते हुए एक बार वे जंगल में भटक गए। वहाँ उन्हें चार गोपाल-पुत्र (ग्वाले के लड़के) मिले। मुनि के उपदेश से चारों दीक्षित हो गए। उनमें से दो मुनियों के मन में साधुओं के मलिन वस्त्रों से घृणा थी। वे इसी जुगुप्सा वृत्ति को लिए देवगति में गए और वहाँ से शांडिल्य ब्राह्मण की दासी यशोमती के यहाँ जन्मे। एक बार वे अपने खेत में वृक्ष के नीचे सो रहे थे कि सांप ने उन्हें काट खाया। दोनों ही मरकर जंगल में हरिण बने। शिकारी के बाण से फिर दोनों मारे गये। अनन्तर राजहंस बने और एक मछुए ने दोनों को गर्दन मरोड़ कर मार डाला। उस समय वाराणसी में एक वैभवसम्पन्न 'भूतदत्त' नामक चाण्डाल रहता था। दोनों हंस मरकर उसके पुत्र हुए। दोनों ही बहुत सुन्दर थे-एक का नाम चित्र था और दूसरे का नाम सम्भूत । वाराणसी के तत्कालीन राजा शंख का मन्त्री नमुचि था। किसी भयंकर अपराध पर राजा ने उसे मृत्युदण्ड दिया था। वध का काम भूतदत्त को सौंपा गया। भूतदत्त ने अपने दोनों पत्रों को अध्ययन कराने की शर्त पर उसे अपने घर में चोरी से छुपा लिया। नमुचि ने उन्हें अच्छी तरह अध्ययन कराया, दोनों अनेक विद्याओं में निष्णात बन गये। अपनी पत्नी के साथ नमुचि का गलत व्यवहार देखकर क्रुद्ध भूतदत्त ने उसे मारने का निश्चय किया। दोनों लड़कों ने नमुचि को इसकी सूचना दे दी। अत: वह वहाँ से प्राण बचाकर भागा और हस्तिनापुर जाकर चक्रवर्ती सनत्कुमार के यहाँ मन्त्री बन गया। ११७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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