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११- बहुश्रुत - पूजा
५.
७.
८.
नासीले न विसीले न सिया अइलोलुए ।
अकोहणे सच्चरए सिक्खासीले ति वच्चई ॥
अह चउदसहि ठाणेहिं वट्टमाणे उ संजए । अविणीए वुच्चई सो उ
निव्वाणं च न गच्छइ ॥
अभिक्खणं कोही हवइ पबन्धं च पकुव्वई । मेत्तिज्जमाणो वमइ सुयं लद्धूण मज्जई ॥
अवि पावपरिक्खेवी अवि मित्तेसु कुप्पई । सुप्पियस्सावि मित्तस्स रहे भासइ पावगं ।।
९. पइण्णवाई दुहि थद्धे लुद्धे अणिग्गहे । असंविभागी अचियत्ते अविणीए ति वुच्चई ।
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(४) जो शील, असर्वथा आचार हीन न हो,
(५) जो विशील, दोषों से कलंकित न हो,
(६) जो रसलोलुप - चटौरा न हो, (७) जो क्रोध न करता हो, (८) जो सत्य में अनुरक्त हो, इन आठ स्थितियों में व्यक्ति शिक्षाशील होता है ।
चौदह प्रकार से व्यवहार करने वाला संयत-मुनि अविनीत कहलाता है। और वह निर्वाण प्राप्त नहीं करता है ।
(१) जो बार बार क्रोध करता है, (२) जो क्रोध को लम्बे समय तक ये रखता है,
(३) जो मित्रता को ठुकराता है, (४) जो श्रुत प्राप्त कर अहंकार करता है
(५) जो स्खलना होने पर दूसरों का तिरस्कार करता है, (६) जो मित्रों पर क्रोध करता है, (७) जो प्रिय मित्रों की भी एकान्त में बुराई करता है
(८) जो असंबद्ध प्रलाप करता है, (९) द्रोही है,
(१०) अभिमानी है, (११) रसलोलुप है,
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