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________________ १०-द्रुमपत्रक ३४. तिण्णो हु सि अण्णवं महं हे गौतम ! तू महासागर को तो किं पुण चिट्ठसि तीरमागओ। पार कर गया है, अब तीर-तट के अभितुर पारं गमित्तए निकट पहुँच कर क्यों खड़ा है? समयं गोयम! मा पमायए। उसको पार करने में जल्दी कर । गौतम ! क्षण भर का भी प्रमाद मत कर। ३५. अकलेवरसेणिमुस्सिया तू देहमुक्त सिद्धत्व को प्राप्त कराने सिद्धिं गोयम लोयं गच्छसि। वाली क्षपक श्रेणी पर आरूढ़ हो कर खेमं च सिवं अणुत्तरं क्षेम, शिव और अनुत्तर सिद्धि लोक समयं गोयम ! मा पमायए। को प्राप्त करेगा। अत: गौतम ! क्षण भर का भी प्रमाद मत कर। ३६. बुद्धे परिनिव्वुडे चरे बुद्ध-तत्त्वज्ञ और उपशान्त होकर गामगए नगरे व संजए। पूर्ण संयतभाव से तू गांव एवं नगर में सन्तिमग्गं च बूहए विचरण कर। शान्ति मार्ग को बढ़ा। समयं गोयम ! मा पमायए। गौतम ! इसमें समय मात्र का भी प्रमाद मत कर। ३७. बुद्धस्स निसम्म भासियं अर्थ और पद से सुशोभित एवं सुकहियमट्ठपओवसोहियं। सुकथित बुद्ध (पूर्णज्ञ) की-अर्थात् रागं दोसं च छिन्दिया भगवान् महावीर की वाणी को सुनकर, सिद्धिगई गए गोयमे॥ राग द्वेष का छेदन कर गौतम सिद्धि गति को प्राप्त हुए। -त्ति बेमि। —ऐसा मैं कहता हूँ। *** ** Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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