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________________ ९२ २९. चिच्चाण धणं च भारियं पव्वइओ हि सि अणगारियं । मा वन्तं पुणो वि आइए समयं गोयम ! मा पमायए ।। ३०. अवउज्झिय मित्तबन्धवं विउलं चेव धणोहसंचयं । मा तं बिइयं गवेसए समयं गोयम ! मा पमायए ॥ अज्ज दिस्स बहुमए दिस्सई मग्गदेसिए । संपइ नेयाउए पहे समयं गोयम ! मा पमायए । ३१. न हु जि ३२. अवसोहिय कण्टगापहं ओइणो सिहं महालयं । गच्छसि मग्गं विसोहिया समयं गोयम ! मा पमायए ।। ३३. अबले जह भारवाहए मा मग्गे विसमेवगाहिया । पच्छा पच्छाणुतावए समयं गोयम ! मा पमायए । Jain Education International उत्तराध्ययन सूत्र धन और पत्नी का परित्याग कर तू अनगार वृत्ति में दीक्षित हुआ है । अतः एक बार वमन किए गए भोगों को पुनः मत पी, स्वीकार मत कर । गौतम ! अनगार धर्म के सम्यक् अनुष्ठान में समय मात्र का भी प्रमाद मत कर । मित्र, बान्धव और विपुल धनराशि को छोड़कर पुनः उनकी गवेषणा ( तलाश ) मत कर । हे गौतम! समय मात्र का भी प्रमाद मत कर । भविष्य में लोग कहेंगे- 'आज जिन नहीं दीख रहे हैं, और जो मार्गदर्शक हैं भी, वे एक मत के नहीं हैं ।' किन्तु आज तुझे न्यायपूर्ण मार्ग उपलब्ध है । अतः गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत कर । कंटकाकीर्ण पथ छोड़कर तू साफ राजमार्ग पर आ गया है । अत: दृढ़ श्रद्धा के साथ इस मार्ग पर चल । गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत कर । कमजोर भारवाहक विषम मार्ग पर जाता है, तो पश्चात्ताप करता है, गौतम ! तुम उसकी तरह विषम मार्ग पर मत जाओ । अन्यथा बाद में पछताना होगा । गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत कर । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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