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________________ द्रुमपत्रक वृक्ष से सूखा पत्ता गिर जाता है। क्या मनुष्य के साथ भी ऐसा ही नहीं होता है? भगवान् महावीर.की वाणी को अच्छी तरह जाँच कर, परख कर ही गौतम ने महावीर पर विश्वास किया था। गौतम का महावीर के प्रति परम अनुराग था। उनका ज्ञान अनुपम था। उनका संयम श्रेष्ठ था। दीप्तिमान सहज तपस्वी जीवन था, उनका। सरल और सरस अन्त:करण के धनी थे वे। श्रेष्ठता के किसी भी स्तर पर गौतम कम नहीं थे। फिर भी प्रस्तुत अध्ययन के अनुसार भगवान् महावीर ने ३६ बार 'क्षण मात्र का भी प्रमाद' न करने के लिए कहा है उन्हें । ऐसा क्यों? इसके दो कारण हो सकते हैं। प्रथम है, संघ में सैकड़ों व्यक्ति सर्वज्ञ सर्वदर्शी हो रहे हैं। अभी-अभी आए हैं, और आने के साथ ही अनन्त ज्ञान दर्शन को भी प्राप्त हो गये। संघ में आये दिन ऐसी घटनाएं हो रही हैं । गौतम इसे देख रहे हैं। हो सकता है, गौतम के मन को इन घटनाओं ने विचलित किया हो, और इस पर भगवान् महावीर ने कहा हो कि-"गौतम ! शंका मत करो। तुम भी एक दिन अवश्य ही मेरी तरह बनोगे। अभी मेरी उपस्थिति है, मैं तुम्हें मार्ग दर्शक के रूप में प्राप्त हूँ। अत: किसी भी प्रकार के अधीर हुए बिना जिस राजमार्ग पर तुम आ गए हो, उस पर पूर्ण दृढ़ता के साथ चलो। तुमने संसार-सागर पार कर लिया है, अब तो केवल किनारे का छिछला जल ही शेष है। तट पर आते-आते क्यों रुक गये हो? इसे भी पार कर जाओ। जीवन क्षणिक है। शरीर और इन्द्रियों की शक्ति प्रतिक्षण क्षीण हो रही है। अगर अभी अवसर चूक गए, तो इस जीव को संख्यात, असंख्यात और अनन्त काल तक संसार में परिभ्रमण करना पड़ेगा। अत: एक क्षण का भी प्रमाद न करो।" ८५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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