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९-नमिप्रव्रज्या
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६०. तो वन्दिऊण पाए
इसके पश्चात् नमि मुनिवर के चक्कंकुसलक्खणे मुणिवरस्स। चक्र और अंकुश के लक्षणों से युक्त आगासेणुप्पइओ
चरणों की वन्दना करके ललित एवं ललियचवलकुंडलतिरीडी॥ चपल कुण्डल और मुकुट को धारण
करने वाला इन्द्र ऊपर आकाश मार्ग से
चला गया। ६१. नमी नमेइ अप्पाणं नमि राजर्षि ने आत्म-भावना से
सक्खं सक्केण चोइओ। अपने को विनत किया। साक्षात् देवेन्द्र चइऊण गेहं वइदेही के द्वारा प्रेरित होने पर भी गृह और सामण्णे पज्जुवडिओ॥ वैदेही-विदेह देश की राज्यलक्ष्मी को
त्याग कर श्रामण्य भाव में सुस्थिर
रहे। ६२. एवं करेन्ति संबुद्धा संबुद्ध, पण्डित और विचक्षण
पंडिया पवियक्खणा। पुरुष इसी प्रकार भोगों से निवृत्त होते विणियट्टन्ति भोगेसु हैं, जैसे कि नमि राजर्षि । जहा से नमी रायरिसी। -त्ति बेमि।
-ऐसा मैं कहता हूँ।
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