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चन्दना जी जैन संघ की एक महान् विदुषी साध्वी हैं। उनका अध्ययन विस्तृत है, चिन्तन बहुत गहरा है। प्राकृत व्याकरण, जैन इतिहास, तत्त्वार्थ सूत्र टीका आदि अनेक ग्रन्थ उकनी विद्वत्ता के साक्षी हैं । दर्शनशास्त्र की तो वे प्रकाण्ड पण्डिता हैं। उनकी वाणी में वह जादू है, कि प्रवचन करती हैं, तो श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देती हैं। प्रतिपाद्य विषय का प्रतिपादन इतना चिन्तन प्रधान, तलस्पर्शी एवं सर्वांगीण होता है कि कुछ पूछो नहीं। उत्तराध्ययन सूत्र के प्रस्तुत अनुवादन एवं सम्पादन में भी उनकी विलक्षण प्रतिभा के दर्शन होते हैं। शुद्ध मूलपाठ, स्वच्छ मूलस्पर्शी हिन्दी अनुवाद, प्रत्येक अध्ययन के प्रारम्भ में अध्ययन के प्रतिपाद्य विषय की संक्षिप्त, किन्तु गम्भीर मीमांसा और अन्त में टिप्पण आदि के रूप में इतना अच्छा कार्य हुआ है, जो चिरअभिनन्दनीय रहेगा। एतदर्थ हम श्री चन्दना जी के आभारी हैं।
प्रस्तुत उत्तराध्ययन सूत्र पुस्तक का द्वितीय संस्करण का प्रकाशन सन्मति ज्ञानपीठ, जैन भवन, लोहामण्डी, आगरा की ओर से हुआ है।
एतदर्थ पूज्य पण्डित विजय मुनि जी महाराज धन्यवादाई हैं, जो अस्वस्थ होने पर भी उन्होंने इस पुस्तक के प्रकाशन में अपनी योग्य सेवाओं के साथ निष्ठापूर्वक श्रम-साधना में निरन्तर अनुरत रहे हैं। उन्हीं के कारण इस पुस्तक का द्वितीय संस्करण इतना जल्दी व सुन्दर मुद्रण सम्भव हो सका है। ___ द्वितीय संस्करण पाठकों को समर्पित करके हम अपने कर्तव्य को पूरा कर
जैन भवन, लोहामण्डी, आगरा २८ फरवरी, १९९७, शुक्रवार
ओम प्रकाश जैन
मन्त्री श्री सन्मति ज्ञानपीठ, आगरा
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