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________________ प्रकाशकीय “उत्तराध्ययन सूत्र” पुस्तक का द्वितीय संस्करण आपके समक्ष प्रस्तुत करते हुए हमें अपार हर्ष का अनुभव हो रहा हैं । इस पुस्तक का नवीन संस्करण आना इस बात का अटूट प्रमाण है कि हमारे पाठकों को यह पुस्तक पसन्द आई है तथा सर्वत्र इसका स्वागत हुआ है। पुस्तक का प्रथम संस्करण काफी समय से समाप्त हो गया था । 1 प्राचीन जैन आगम साहित्य में उत्तराध्ययन सूत्र का महत्त्वपूर्ण स्थान है अतएव एक अजैन विद्वान् का तो यह कहना है, कि उत्तराध्ययन जैन परम्परा की गीता है । वस्तुतः उत्तराध्ययन सूत्र जीवन-सूत्र है । वह जीवन के विभिन्न आध्यात्मिक, नैतिक एवं दार्शनिक दृष्टिकोणों को बड़ी गहराई से स्पर्श करता है । एक प्रकार से यह जीवन का सर्वांगीण दर्शन है । यही कारण है, कि उत्तराध्ययन सूत्र पर जितनी टीकाएँ, उपटीकाएँ एवं अनुवाद आदि लिखे गये हैं, इतने अन्य किसी आगम पर नहीं । भारत की वर्तमान राष्ट्रभाषा हिन्दी है । हिन्दी में भी अब तक उत्तराध्ययन के अनेक अनुवाद प्रकाशित हुए हैं। फिर भी अद्यतन हिन्दी में एक अच्छे अनुवाद की अपेक्षा थी । ऐसा अनुवाद, जो मूल की आत्मा को ठीक तरह स्पर्श कर सके, कब से अपेक्षित रहा है। पूज्य उपाध्याय श्री अमरमुनि जी महाराज स्वयं ही काफी समय से यह भावना अन्तर्मन में संजोए हुए थे । परन्तु साधु सम्मेलन आदि के प्रसंगों पर दूर-दूर तक भ्रमण करने एवं संघ-संगठनादि कार्यों में अत्यधिक व्यस्त रहने के कारण संकल्पसिद्धि नहीं प्राप्त कर सके । सामायिक सूत्र तथा आवश्यक सूत्रान्तर्गत श्रमण-सूत्र का उनके द्वारा शुद्ध मूलपाठ, संस्कृत छाया, हिन्दी भाष्य, विवेचन, तुलनात्मक आलोचना आदि के साथ जो सम्पादन हुआ है, वह कितना महत्त्वपूर्ण एवं अभिनन्दनीय है । आज भी विद्वज्जगत् में उसकी प्रतिष्ठा है । उत्तराध्ययन आदि अन्य आगम साहित्य का भी वे उसी विस्तृत एवं विवेचनप्रधान शैली में सम्पादन करना चाहते थे । परन्तु खेद है, वह इच्छा उनकी पूर्ण न हो सकी । काश, वह पूर्ण होती, तो कितना अच्छा होता । I हमें यह निवेदन करते अतीव हर्षानुभूति है, कि उपाध्याय श्री जी के उक्त कार्य को आचार्या दर्शनाचार्य साध्वी श्री चन्दना जी ने आगे बढ़ाया हैं । श्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003417
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanashreeji
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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