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८-कापिलीय
२०. इइ एस धम्मे अक्खाए विशुद्ध प्रज्ञा वाले कपिल मुनि ने
कविलेणं च विसुद्धपन्नेणं। इस प्रकार धर्म कहा है। जो इसकी तरिहिन्ति जे उ काहिन्ति । सम्यक् आराधना करेंगे, वे संसारसमुद्र तेहिं आराहिया दुवे लोग।। को पार करेंगे। उनके द्वारा ही दोनों
लोक आराधित होंगे। -त्ति बेमि।
-ऐसा मैं कहता हूँ।
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