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________________ |६८ । उपासक आनन्द । लक्ष्मण को भी देख लीजिए। उन्होंने कितनी हिम्मत के साथ अपने भ्रातृत्व की मर्यादा का पालन किया। वे संसार को बता गए, कि भाई की मर्यादा क्या होती है। भाई जब तक महलों में रहे, तब तक महलों में साथ रहे, खान-पान और मानसम्मान में समान भागीदार रहे, किन्तु जब राम के वन-गमन का प्रश्न आया, तब लक्ष्मण पीछे रह जाते, तो उन्हें रामायण में कहाँ जगह मिलती? किन्तु नहीं, लक्ष्मण ने सराहनीय रूप में भाई की मर्यादा का पालन किया। उन्होंने सोचा-जहाँ राम हैं, वहीं मेरे लिये अयोध्या है। जब रावण, सीता को हरण करके ले गया, तब राम ने भी अपने पतित्व की मर्यादा का यथोचित रूप से पालन किया। अपने स्थान पर सीता को न पाकर राम पागल हो गए। हरेक वृक्ष से और फल-फूल से पूछते फिरे, कि सीता को देखा है, तुमने ? इतने बड़े राम, सूरज, चाँद और पक्षियों से भी सीता का पता पूछते हैं। जंगल में चौकड़ी भरने वाले हिरनों से भी वही पूछते हैं। आखिर उन्हें क्या हो गया ? क्यों इतने व्याकुल है? मैं कहता हूँ, राम की इसी व्याकुलता ने तो राम को इतना ऊँचा बना दिया है। सीता का नारी के रूप में राम के मन में कोई महत्त्व नहीं है। नारी भोग-विलास की सामग्री है, इसलिए उनकी व्याकुलता नहीं है। वे पति के नाते सीता का उत्तरदायित्व लेकर वन में आए हैं। उन्होंने प्रतिज्ञा की है, कि हमारे ऊपर संकट पड़ेगा, तो पहले मैं सहन करूँगा, पीछे सीता। सुख पहले सीता का है, और पीछे मेरा। ___पति और पत्नी का सम्बन्ध किस रूप में है? सुख और भोग-विलास की सामग्री पहले तुम्हारी और फिर हमारी है। दुःख तथा संकट पहले मेरा है, और फिर तुम्हारा है। भारतवर्ष ने पति और पत्नी के सम्बन्ध में इतनी बड़ी भावनाएँ जोड़ी हैं। यह एक पवित्र पति-पत्नी का भाव है। राम यह सोचकर व्याकुल नहीं बने कि सीता उनके भोग की सामग्री है, उनके व्याकुल होने का कारण यह था, कि वह अपनी पत्नी की रक्षा नहीं कर सके। वह सोचते हैं—पत्नी कितना कष्ट पा रही होगी। न जाने किस विषम स्थिति में पड़ी होगी। यही पतित्व की मर्यादा थी, जिसने राम को व्याकुल बना दिया था। राम के दुख ने राम को व्याकुल नहीं बनाया, सीता के दुख ने राम को व्याकुल बनाया। राम का यह व्याकुल भाव भी पतित्व की मर्यादा के अन्तर्गत होने के कारण अभिनन्दनीय बन गया, प्रशंसनीय बन गया है। राम, सीता के लिए चल पड़े। नहीं देखा, कि समुद्र को पार करना है। नहीं ‘सोचा कि सीता को लौटाने जाता हूँ, तो स्वयं लौटूंगा या नहीं। वह पत्नी की रक्षा के For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003416
Book TitleUpasak Anand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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