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________________ | समवसरण में प्रवेश । ६७ हैं। वह सोचते हैं—मैं अपनी मर्यादा का पालन नहीं करूँगा, तो पिता का ऋण कैसे अदा कर सकूँगा? वास्तव में वही पुत्र ऋण अदा कर सकता है, जो अपने पुत्र बनने की मर्यादाओं का पालन करता है। अपनी मर्यादाओं का पालन करने के कारण राम हमारी आँखों के सामने चमक गए। उन्हें हुए बहुत लम्बा समय हो चुका है, किन्तु आज भी वे जनता के हृदय में बसे हुए हैं। आज भी रामायण महलों से लेकर झोंपड़ियों तक गाई जा रही है। राम की मर्यादा जग प्रसिद्ध है। अतएव राम को मर्यादा-पुरुष कहा गया है। दूसरी तरफ सीता को देखिए। उसने भी पत्नी होने की मर्यादा का भली-भाँति पालन किया। सीता के विषय में कहा जाता है, कि वह प्रत्येक क्रिया में अपने पति का अनुगमन किया करती थी। कवि ने कहा है छायेवानुगामिनी कोई अपनी छाया से पूछे, तुझे किधर जाना है? तो छाया क्या उत्तर देगी? यही, कि जिधर तुझे जाना है, उधर ही मुझे जाना है। आप हजार कोशिश कीजिए, कि मैं जाऊँ; किन्तु छाया न जाए, पर ऐसा नहीं हो सकता। भारतवर्ष की पत्नियों ने, सन्नारियों ने, एक ही आदर्श, सर्वदा अपने सामने रखा है कि वे अपने पति के पीछे छाया की भाँति चलती हैं। पति का कर्म उसका कर्म। पति की वाणी उसकी वाणी। पति का विचार उसका विचार। सीता ने पत्नी की मर्यादा का पालन किया। उसने ऊँचे-ऊँचे महलों को छोड़ा। फूलों की शय्या को छोड़ा और धूप और गर्मी सहन की। रामायण में सीता के लिए कहा गया है कि सीता ने पति के साथ रह कर वन में विकट कष्ट सहन किए थे। उस युग की नारी के लिए कहा है असूर्यपश्या राज-दारा परन्तु सीता इसका अपवाद रूप थी। उसने छाया भी देखी, चिल-चिलाती धूप भी देखी थी। अर्थात्-सीता इतनी सुकुमारी और कोमलांगी थी, कि सूर्य को देख भी नहीं सकती थी। कवि की यह अलंकृत भाषा है। सकमारता की हद है मगर वही सीता, नंगे पैरों. ऊबड़-खाबड़ रास्ते पर राम के पीछे-पीछे चल दी। राम ने उसे वन-जीवन की सभी कठिनाइयाँ बतलाईं, मगर उन कठिनाइयों से डरकर सीता अपनी मर्यादाओं को न त्याग सकी। वह छायावत् अपने पति राम के पीछे-पीछे चली। उसने वन की सभी आपदाओं को सहा, मगर नारी की मर्यादाओं से मुख नहीं मोड़ा। इसी कारण सीता अमर है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003416
Book TitleUpasak Anand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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