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________________ DOCTOR ५०। उपासक आनन्द शब्द-शास्त्र की दृष्टि से यही आशय उचित मालूम होता है। पहले 'वजन' या उसके पर्याय वाचक किसी शब्द को कहीं से घसीट कर लावें, और फिर 'अल्प' शब्द के साथ उसका नाता जोड़ें; इतनी क्लिष्ट कल्पना करने की आवश्यकता ही क्या है ? उस 'अल्प' का आभरणों के साथ जो सीधा सम्बन्ध है, उसे तोड़ने की भी क्या आवश्यकता है ? हाँ, अर्थ में कोई असंगति पैदा होती हो, तो क्लिष्ट कल्पना का भी आश्रय लेना पड़ता है। परन्तु यहाँ तो असंगति के बदले संगति ही ज्यादा दिखाई देती है। भगवान् की सेवा में, आनन्द जैसा धर्म-प्रेमी गृहस्थ, बहुत सारे गहने पहन कर जाए, इस कल्पना के बदले थोड़े-से गहने पहन कर जाना ही अधिक युक्ति-संगत जान पड़ता है। ऐसी स्थिति में जोड़-तोड़ करने की अपेक्षा मूल-पाठ का सरल और सीधा अर्थ करना ही योग्य है। अभिधा से काम चलता हो, तो वहाँ लक्षणा की आवश्यकता नहीं। ___मैंने इस वाक्य का यही अर्थ समझा है, और आपको संक्षेप में समझाने का प्रयत्न किया है। मेरी बात आपकी समझ में न आए, तो मेरी बात मेरे पास है। इस प्रकार तैयार होकर आनन्द अपने घर से निकला और दर्शन करने के लिए चला। उसने छत्र-धारण किया। छत्र के ऊपर फूल मालाएँ पड़ी हुई थीं। कोरंट बहत पुराने पौधे का नाम है। आजकल जाँच हुई है, और विचारकों ने निर्णय किया है, कि वह हजारा है। इसके फूल सफेद, पीले और लाल होते हैं। इस प्रकार हजारे के फूलों की मालाएँ आनन्द के छत्र पर पड़ी हुई थीं। सुना गया है, कि आजकल छत्र धारण करने में भी जाति-पाँति का प्रश्न पैदा हो जाता है। जहाँ तक छत्र का प्रश्न है, जाति-विशेष के साथ उसका कोई सम्बन्ध नहीं होना चाहिए। आप ऊँची जाति के लोग तो छत्र लगाकर चलें, और कोई छोटी समझी जाने वाली जाति का व्यक्ति छत्र लगाए, तो उसे सहन न कर सकें, और संघर्ष करने लगें, यह उचित नहीं है। मैंने सुना है, कि बड़ी जाति वालों ने छोटी जाति वालों के छत्र के टुकड़े-टुकड़े कर दिए, और कहा तुम छत्र लगाओगे तो हम क्या लगाएँगे? यह जाति का मद है। _इसी तरह छोटो जाति वाले घोड़े पर चढ़ते हैं, तो बड़ी जाति वाले कहते हैं, तुम घोड़े पर चढ़ोगे, तो हम क्या करेंगे? सुना है, राजस्थान में कई जगह अन्य बहिनों को पैर में चाँदी के गहने नहीं पहनने दिए जाते। इस बात को लेकर कभी-कभी बड़ा संघर्ष हो जाता है, और इन संघर्षों में अब तक कइयों की जान चली गई है। यह सब बड़ी जाति वालों का बड़ा अन्याय है। यही हाल रहा, तो कल कोई कहने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003416
Book TitleUpasak Anand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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