________________
[४४ उपासक आनन्द निकला। देवी-देवता विचार में पड़ गए, कि कौन पीए जहर ? जो पीएगा वही समाप्त हो जाएगा और फिर अमृत उसके क्या काम आएगा?
इन्द्र से कहा गया तुम बहुत शक्ति-शाली हो, और देवों के राजा कहलाते हो। तुम इसे ले लो और इसे पीलो।
इन्द्र ने कहा क्यों, मुझे मार डालना चाहते हो क्या ? विष्णु से कहा गया-तुम्हीं इसे ग्रहण करो।
तब विष्णु बोले-हमारी भी हिम्मत नहीं है। हम तो अमृत के लिए आए थे, जहर पीने के लिए नहीं। __ शंकर ने कहा-अमृत तो मिलने ही वाला है, किन्तु अगवानी जहर से है। जिसमें जहर पीने का सामर्थ्य होगा, वही अमृत भी पी सकेगा। अगर हम इस जहर को नहीं पचाएँगे, तो अमृत कहाँ से पाएँगे? और पाएँगे भी तो उसे कैसे पचाएँगे? विष को पचाना सरल नहीं बड़ा ही कठिन है।
तब ही किसी ने कहा--तो शंकर जी, आप ही इसे पी डालिए न ?
शंकरजी ने उस जहर को शान्त भाव से पी लिया। उसे अन्दर नहीं उतरने दिया, और न बाहर ही आने दिया। गले में ही रख लिया, कंठ में ही दबा लिया। इस कारण वे नील-कण्ठ हो गए। शिव का गला विषपान से नीला पड़ गया था।
शंकर जहर को पीकर हजम कर सके, तो वे शिव शंकर बने और उन देवीदेवताओं को अमृत पान करा सके।
जो मनुष्य, समाज का अगुआ या नेता बनना चाहता है, और देश का, परिवार का या पंचायत का मुखिया बनना चाहता है, उसे जहर पीने के लिए भी तैयार रहना चाहिए। उसके लिए उसकी निन्दा, द्वेष और घृणा आदि जहर ही हैं, जहर से भी बड़े जहर हैं। किसी की निन्दा हुई, और वह जहर खाकर मर गया। वह क्यों मर गया ? इसलिए कि वह निन्दा के जहर को हजम नहीं कर सका।
नेता को पहले क्या मिलता है? बड़े बनो और हर तरफ से फूलों के हार ही मिलें, यह मुश्किल ही समझो।
राष्ट्र की बात तो दर रही, जिसे अपने परिवार का नेता भी बनने का सौभाग्य मिलता है, उसे भी जहर ही पीने को मिलता है। अमृत दूर है। परिवार वालों से सेवाएँ मिलना तो अभी दूर है, पहले संघर्ष है। द्वेष, ईर्ष्या और घृणा आदि को शान्त भाव से पीना पड़ेगा, और उसे भीतर तक नहीं उतरने देना होगा! तब कहीं शंकर बना जाएगा। किसी कवि ने कहा है...
मनुज दुग्ध से, दनुज रुधिर से, अमर सुधा से जीते हैं। किन्तु हलाहल इस जगती का शिवशंकर ही पीते हैं।
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org