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________________ आनन्द का प्रस्थान | ४३ आप कहेंगे, सोने में नशा कहाँ है ? धतूरे का नशा तो प्रसिद्ध है, परन्तु सोने में नशा कहाँ से आया ? परन्तु ऐसी बात नहीं है। धन में बड़ा नशा है। धतूरे को हाथ में लिए रहिये, नशा नहीं चढ़ेगा। बोरी भरकर सिर पर रख लीजिए, तब भी नशा नहीं चढ़ेगा। खाएँगे, तभी नशा चढ़ेगा। शरीर में जाएगा, हरकत शुरू करेगा, तब पागलपन शुरू होगा। परन्तु सोना तो दीख पड़ते ही नशा चढ़ा देता है, और जब यह हाथ में आ जाता है, तब मनुष्य धर्म-कर्म सभी को भूल गहरे नशे के बीच मदहोश हो जाता है। तो, इतनी बड़ी गर्मी है, सोने में। इतना गहरा नशा है, इस कनक में। सचमुच वे भाग्यशाली हैं, जो सोने को पाकर भी उसे हजम कर जाते हैं। जो हजम कर जाते हैं, उन्हें नशा नहीं चढ़ता। बोल-चाल में, व्यवहार में, बिरादरी में, परिवार में कहीं भी नशा नहीं चढ़ता। उन्हें भाग्यशाली समझना चाहिए। अधिकांश लोग तो धन को पाकर पागल ही हो जाते हैं। धन मनुष्य को अहंकारी बनाता है 1 हाँ तो, मैं आनन्द की बात कह रहा हूँ। उसके पास कनक था, परन्तु उसका नशा उस पर नहीं चढ़ा था । यों एक-दो रुपये की गर्मी भी बड़ी भयंकर होती है। हजार दो हजार तिजोरी में पड़ जाँए, तो जमीन पर पैर भी नहीं पड़ता । बहिनें गहने पहनकर जब बाजार में निकलती हैं, तो उनकी यही भावना रहती है, कि उनके गहनों की चमक सबको अपनी ओर आकर्षित करे। सभी उसके पास वाले सोने को देखें । बिरादरी में किसी की साता पूछने जाएँगी तो उसके दुख-दर्द को पूछना तो दूर रहा, वहाँ भी अपने गहनों की चर्चा करेंगी। किसी आनन्द उत्सव में जाएँगी, तो वहाँ आनन्द के गीत नहीं गाएँगी, गहनों की ही चर्चा चलाएँगी। और धर्म का उपदेश सुनने आएँगी, तो उपदेश नहीं सुनेंगी, गहनों की चर्चा सुनाएँगी। क्यों न हो, सोने की गर्मी जो है । उसे हज़म कर जाना क्या कोई साधारण बात है। -- आनन्द के पास बारह करोड़ सोनैए का धन था। वह धन आकाश से नहीं बरस पड़ा था, आखिर कमाया हुआ था। उस लक्ष्मी की झंकार उसके यहाँ रहती थी । मगर आनन्द ने वह जादू पैदा किया था, कि जहर खाकर भी उसे जहर नहीं चढ़ा । कनक को पाकर भी उसे नशा नहीं चढ़ने पाया । लक्ष्मी उसकी दासी थी, वह उसका दास नहीं था । अभिप्राय यह है, कि धन जहर है, और उसको अमृत बना सकता है—उस धन के द्वारा अपना, और जनता का कल्याण कर सकता है, वह शिवशंकर बन जाता है। आपने पुराण सुना होगा। जब देवी-देवता अमृत की खोज में भटकने लगे, तब उन्हें पता चला कि अमृत समुद्र में है। तब समुद्र को मथने का विचार किया। मथने लगे तो सबसे पहले जहर निकला। पहले अमृत नहीं निकला, हलाहल जहर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003416
Book TitleUpasak Anand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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