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________________ प्रभु का पदार्पण उपासकदशांगसूत्र में गृहस्थ जीवन की जिस महत्त्वपूर्ण झाँकी को चित्रित किया गया है, वह प्रत्येक गृहस्थ के लिए अनुकरणीय, जीवनोपयोगी एवं लाभकारी है। इस सूत्र के प्रारम्भ में सुधर्मा स्वामी ने जिस आनन्द नामक श्रावक के निर्मल चरित्र का चित्रण किया है, वह एक ऐसा व्यक्ति है, जो करोड़ों का स्वामी होने पर भी स्वभावतः दयालु, शिष्ट और कृपालु है। तो, यह समझ लेना तो भारी भूल होगी, कि सुधर्मा स्वामी ने आनन्द का जो वर्णन किया है, वह इसलिए किया है, कि उसके पास करोड़ों की सम्पत्ति थी। अपने नगर और समाज में उसकी बड़ी भारी प्रतिष्ठा थी । वास्तव में, आनन्द को शास्त्र में जो महत्त्वपूर्ण स्थान मिला है, उसका कारण उसकी कोई लौकिक सफलता या बड़प्पन नहीं, बल्कि उसका कारण है, भोग की दुनियाँ में बैठकर भी चारों ओर से भोग-विलास के उस समुद्र को पार करते हुए अपने जीवन को ऊँचा बनाना । आनन्द ने अपने जीवन में एक चमक पैदा की, एक रोशनी जलाई और उसी के उजाले में उसने अपने जीवन की यात्रा की। आनन्द के जीवन की चमक पच्चीस सौ वर्षों के बाद आज भी हमें मिल रही है । पच्चीस सौ वर्ष कुछ थोड़े नहीं हैं । कहने में तो जल्दी कह जाते हैं, किन्तु गिनने में बहुत हैं । इन पिछले पच्चीस सौ वर्षों में कितनी राज्य- क्रान्तियाँ हुईं, कितने इन्कलाब आए, कितने ही राज्य इधर के उधर हो गए, कितने ही सोने के सिंहासन मिट्टी में मिल गए, मगर इन जीवनियों पर काल का कोई असर न हुआ और राज्य क्रान्तियाँ भी उन पर अपना कोई प्रभाव न डाल सकीं। वास्तव में, आनन्द का जीवन- कमल तो तब खिलता है, जब प्रकाश-पुंज श्रमण भगवान् महावीर का वाणिज्यग्राम में पदार्पण होता है। मूल पाठ में भगवान् का 'समणे भगवं महावीरे' शब्दों से उल्लेख किया गया है। सहज ही जिज्ञासा हो सकती है, कि महावीर से पहले जब 'भगवान्' विशेषण लगा दिया गया है, तब उससे भी पहले 'श्रमण' विशेषण लगाने की क्या आवश्यकता थी? महावीर तो महावीर के नाम से ही विख्यात हैं, और आदर सूचक विशेषण 'भगवान्' भी उनके नाम के आगे लगा हुआ है। साथ ही हनुमान जी, जो महावीर के नाम से जगत में प्रसिद्ध हैं, और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003416
Book TitleUpasak Anand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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