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गो-पालक आनन्द । १७] आखिर, इन सब परिपाटियों का रहस्य क्या है? रहस्य यही है, कि मनुष्य क्रमशः अपनी दया का और अपने प्रेम का विस्तार करता जाए, और मनुष्य जगत् से भी उन्हें आगे ले जाए, और सर्प जैसे विषधर पर भी अपनी करुणा का अमृत छिड़के। __आज लोग इस उदार भावना को कितने अंशों में ग्रहण करते हैं, और रूढ़ि की गुलामी कितनी करते हैं, यह अलग प्रश्न है। हमें तो असलियत की ओर ही जाना चाहिए। आनन्द के जीवन पर हम गम्भीरता के साथ विचार करेंगे. तो अपको जीवन की सच्ची दृष्टि प्राप्त हो सकेगी।
कुन्दन-भवन ब्यावर, अजमेर
२०-८-५०
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