SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 147
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [१३४ । उपासक आनन्द । अर्थात् हे गौतम। समय मात्र का भी प्रमाद न करो। जो सोया है, उससे कहो, कि जागो। जो जागा है, उससे कहो कि उठ खड़े होओ। जो खड़ा हो गया, उससे कहो, कि चलने लगो। जो चलने लगे उससे कहो, कि मंजिल पर पहुँचो। कोई भी साधक हो, उससे कहो, कि अपनी मंजिल तय करो, क्यों सोए पड़े हो। यह जीवन सोने के लिए नहीं है। तुम्हारे जीवन में जो प्रेरणा है; उसके लिए समय मात्र का भी प्रमाद मत करो। इस प्रकार इस वाक्य में जो बात है, वही बात हमें इसमें मिलती है: मा पडिबंधं करेह जब आपकी आत्मा में कोई शुभ संकल्प आवे, और मन कहे, कि करूँगा। तो उस समय अपने मन से कहो—देर मत करो। यही बात अपने लिए और यही दूसरों के लिए कहो। अपनी आत्मा को भी क्रियाशील बनाओ, और दूसरों को भी क्रियाशील बनाओ। अपने को भी जगाओ और दूसरों को भी जगाओ। स्वयं अप्रमत्त होकर अपने लक्ष्य की ओर चलो और दूसरों को भी अप्रमत्त बना कर चलने की प्रेरणा दो। ___दान का प्रश्न हो, तो दे डालो। आत्मा से कहो-हे आत्मन् ! देर का काम नहीं है। ब्रह्मचर्य की वृत्ति हो, तो कहो, देर करना अभीष्ट नहीं है। तपस्या या साधना की बात हो, तो आत्मा को आवाज दो, कि विलम्ब असह्य है, देर मत करो। साधना में क्षण भर का भी प्रमाद मत करो। तुम जंगल में लेटे हो और सामने से शेर आता दिखाई दे, तो क्या एक झपकी और लेने की सोचोगे, या उसी समय आत्मरक्षा के लिए दौड़ोगे। तुम्हारा कोई साथी सोया पड़ा होगा, तो उसे उसी समय जगाओगे या सोता रहने दोगे। उस समय देर नहीं करोगे। उस समय आपकी सारी शक्ति जागृत हो जाएगी, और कहोगे-देर मत करो। यही बात साधना के संबंध में भी समझो। मौत का शेर हमारे सामने खड़ा है। जरा भी प्रमाद किया, और सोते पड़े रहे, तो हम उसके ग्रास बन जाएंगे। इसलिए हर क्षण अपने जीवन को संदेश दो, कि-'देर मत करो।' ___ भारतीय संस्कृति में चार आश्रमों को स्थान दिया गया है, और चार वर्णों को भी। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र; यह चार वर्ण हैं। इन चार वर्णों में समाज का वर्गीकरण किया गया है। हमारे यहाँ कहते हैं, कि भगवान् ऋषभदेव ने वर्णव्यवस्था कायम की थी। भगवान् ऋषभदेव ही हमारे यहाँ 'मनु' कहलाते हैं। कुछ भी हो, वर्ण व्यवस्था. भारत में सर्व-मान्य रही है, और समाज की सुव्यवस्था के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003416
Book TitleUpasak Anand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy