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________________ ६४ | अपरिग्रह-दर्शन इस रूप में दिशा-परिमाण का अर्थ यही है, कि मनुष्य अपनी दौड़ का घेरा निश्चित कर ले, कि वहाँ तक मुझे जाना है, और वहां से आगे नहीं जाना है। इस प्रकार अपने आपको तैयार कर लेने के लिए ही इस व्रत का विधान किया गया है। यह एक बहुत बड़ी क्रान्ति थी, बड़ा इन्किलाब था। आज एक देश, दूसरे देश को लूटना चाहता है, और जब जिसे मौका मिलता है, तो एक दूसरे को लूटता है। सब देश म्यान से बाहर तलवारें निकाल कर खड़े हैं और चाहते हैं, कि हमें ऐसी मंडियां मिलती रहें, कि बिना किसी विघ्न-बाधा के हमारी लूट चलती रहे । इस प्रकार एक दूसरे का शोषण करना चाहते हैं, और दूसरे देश के धन को अपने कब्जे में करना चाहते हैं । यह परिग्रह का भीषणतम रूप है। पहले जमाने में किसी राजा की सुन्दरी कन्या होती थी, तो उसको खैर नहीं थी। उस पर दूसरे राजा अपनी आंखें गड़ाये रहते थे। किन्तु लूटने की भावना इतनी नहीं थी । आज एक देश के दूसरे देश पर जो हमले होते हैं, वे व्यापारिक दृष्टि से ही होते हैं। किसी देश में तेल का कुआ निकल आया या यरेनियम की या हीरे की खान निकल आई, तो दूसरे देशों की आंखें उधर घूम जाती हैं। जब मौका पाते हैं, तो उस पर अधिकार करके उसे लूटने का प्रयत्न करते हैं। आजकल होने वाले युद्धों का मूल व्यापारिक लूट है। ___ इस दृष्टि से भगवान महावीर की साधना एक महत्वपूर्ण सन्देश लेकर चलती है। वह सन्देश यही है, कि पहले जीवन पर ब्रेक लगा लो। जहां तक तुम्हारी आवश्यकताएं हैं, उनसे आगे न बढ़ो, न किसी देश पर कब्जा करो, न किसी देश के साधनों पर कब्जा करो और न दूसरे की रोटियां छीनने की कोशिश करो। ___ यही महत्वपूर्ण बात है, और इसी में से अपरिग्रह व्रत निकल कर आया है। पहले अपने जीवन की आवश्यकताओं को समझो, और आवश्यकताओं से अधिक धन का संचय करना बन्द कर दो। भविष्य का संग्रह बन्द नहीं होगा, तो अपरिग्रह का परिपालन कैसे होगा? ___ इसके बाद दान का नम्बर आता है। दान इकट्ठे किए हुए धन का प्रायश्चित्त है । दान के लिए मैं प्रायश्चित्त शब्द का प्रयोग कर रहा हूँ, तो बिना समझे बूझे नहीं । वास्तव में आप दान करते हैं, तो दूसरों पर कोई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003415
Book TitleAparigraha Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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