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________________ अपरिग्रह और दान | ६३ और व्यापार के लिए कहां तक दौड़-धूप करना चाहते हो, इसका परिमाण कर लो। इस रूप में किसी ने पांस-सौ या एक हजार योजन का परिमाण किया तो प्रश्न हुआ- क्या परिमाण करने वाला उसके आगे जा सकता है या नहीं ? कल्पना कीजिए, एक आदमी अपने परिमाण की अन्तिम सीमा तक चला गया, और सीमा के अन्तिम छोर पर जाकर वह रुक गया। मगर वहां पहुँच कर वह देखता है, कि उससे दस कदम आगे किसी बहिन या माता की इज्जत लुट रही है । तो, प्रश्न होता है, कि वह उस मां या बहिन की रक्षा के निमित्त परिमाण से बाहर की भूमि पर जाए या नहीं ? ___ और, यह प्रश्न आज का नहीं है। पुराने जमाने में भी यह सवाल उठा था, कि ऐसे प्रसंग पर वह आगे जाए या वहीं खड़ा-खड़ा देखा करे और उसकी आंखों के सामने सारी गड़बड़ होती रहे ! उस विषम स्थिति में वह क्या करे ? इस प्रसंग पर एक सिपाही की बात याद आ जाती है। सिपाही किसी बंगले के बाहर पहरा दे रहा था। बंगले के दरवाजे पर लिखा था 'बिना इजाजत अन्दर मत आओ।' अचानक चोरों ने प्रवेश वि या, और वे चारदीवारी के अन्दर घुस गए। यह देखकर सिपाही उनके पीछे दौड़ा। तब तक चोर कमरे के अन्दर घुस गए । सिपाही द्वार पर पहुंचा, तो उसकी दृष्टि साइन बोर्ड पर पड़ी। लिखा था-'बिना इजाजत अन्दर मत आओ।' यह देखकर सिपाही बाहर ही खड़ा रह गया । चोर सामान समेट कर रफूचक्कर हो गए। शास्त्रों में दिशा परिमाण का जो विधान किया गया है, वह विधान इस प्रकार का रूप ग्रहण न कर ले, और अर्थ का अनर्थ न हो जाए, इस हेतु हमारे भाष्यकारों ने विचार किया है, और स्पष्ट रूप में कहा है, कि दिशा परिमाण व्रत का उद्देश्य यही है, कि तुम किसी वासना की पूर्ति के लिए आगे नहीं जा सकते हो। पांच आस्रवों के सेवन के लिए जाने का तुम्हारे लिए निषेध है। यदि किसी की रक्षा का प्रश्न है, और किसी का प्रश्न है, तो जन-कल्याण के लिए जाने में दिशा परिमाण व्रत बाधक नहीं भनता । जन-कल्याण के लिए पृथ्वी के एक छोर से दूसरे छोर तक भी जा सकते हो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003415
Book TitleAparigraha Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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