SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५४ | अपरिग्रह-दर्शन सकेंगे? आपके कदम हल्के पड़ेंगे या भारी? आपके कदम भारी होंगे, और थोड़ी देर में हांफने लगेंगे। कदम-कदम पर बैठने का प्रयत्न करेंगे और पसीने से तर हो जाएंगे। सम्भव है तब, आप किसी दूसरे पर अपना बोझ लादने का प्रयत्न करें। इसके विपरीत दूसरा आदमी चलता है, और केवल अपनी आवश्यकता को ही चीजें लेकर चलता है, किन्तु आवश्यकताओं की कल्पना नहीं करता। सहज रूप में जो आवश्यकताएँ हैं, उन पर तो वह विचार करता है, और उनके साधन भी जुटा कर चलता है। पर कल्पना से आवश्यकताएं उत्पन्न करके बोझा नहीं ढोता है। तो उसके कदम हल्के पड़ेगे, वह सुखपूर्वक यात्रा कर सकेगा और आराम से अपनी मंजिल को पा लेगा। जो बात इस यात्रा के लिए है, वही जोवन-यात्रा के लिए भी है। संसार में आए हैं तो बैठ नहीं गए हैं और जब से जीवन ग्रहण किया है, तभी से जोवन गतिशील है। किन्तु प्रश्न यह है, कि जब वह बचपन से जवानी में चला तो इच्छाओं का अधिक बोझ लाद कर चला या हल्का वजन लेकर चला? और इसी प्रश्न में से अपरिग्रह-व्रत निकल कर आता है। जो जीवन की आवश्यकताएँ नहीं हैं, जो जबरदस्ती ऊपर से लादी गईं हैं, वह सब जीवन का भार हैं। चाहे कोई व्रत हो, नियम हो या प्रत्याख्यान हो, यदि वह सहज भाव से उद्भूत नहीं हुआ है, और बलात् लादा गया है, तो वह भी जीवन के ऊपर भार ही है। यों तो अहिंसा, सत्य आदि सभी व्रत हमारे जीवन का महान कल्याण करने वाले हैं और जीवन की समस्याओं को हल करने के लिए बड़े महत्वपूर्ण साधन हैं, पर वे बलात् नहीं लादे जाते, ऊपर से नहीं लादे जाते, बल्कि अन्तरतर से ही उद्भूत होते हैं। ऐसा न हुआ और कार से लादे गए तो समझ लीजिए कि वे पानी में पड़े हुए पत्थर हैं । पत्थर पानी में डाला जाता है, तो वहां पड़ा रहता है, और वर्षों तक पड़ा-पड़ा भी घुलता नहीं है। वह पानो का अंग नहीं बनता । तो जब तक पत्थर पानी में घुलकर उसी के रूप में न मिल जाए, पानी न हो जाए। तब तक पानी और पत्यर अलग-अलग हैं। हां, अगर मिश्री की डली पानी में डालोगे तो वह तुरन्त धुलकर पानी के साथ मिल जायगी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003415
Book TitleAparigraha Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy