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अपरिग्रह और दान
अपरिग्रह का सिद्धान्त जैनधर्म का मूल प्राण है, और संसार भर के सभी धर्मों का हृदय है।
___ जीवन के सम्बन्ध में एक अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रश्न यह है, कि हम जिन्दगी की जो यात्रा कर रहे हैं, उसमें अधिक से अधिक बोझ लाद कर चलें या कम से कम बोझ ले कर चलें ? अधिक बोझ लाद कर यात्रा करने से यात्रा सुखकर होगी या कम बोझ लेकर चलने से यात्रा सुखकर होगी?
___ आप किसी यात्रा पर घर से रवाना हुए और बहुत सारा सामान लाद कर चले। आपने सोचा, रास्ते में बीमार हो जाएंगे, तो दवाई साथ में होनी चाहिए। फिर सोचा-न जाने कौन-सी बीमारी घेर ले। अतएव सभी रोगों की दवाइयां साथ रहनी चाहिए। इस प्रकार एक खासा अस्पताल साथ में बांध लिया !
फिर खाने-पीने की समस्या आई। आपने खाने पीने की चीजें भी साथ में बांध लीं । खाना पकाने के सभी साधन भी रख लिए। ;
फिर वस्त्रों का ध्यान आया और वस्त्रों का एक ढेर भी रख लिया। कहीं सर्दी ज्यादा पड़ने लगी तो क्या होगा? यह सोच कर रजाई ले ली, और ऊनी कपड़े भी बांध लिए। किन्तु सर्दी न हुई और गर्मी लगी तो यह कपड़े क्या काम आएंगे? यह सोच कर बारीक कपड़े भी रख लिए।
- फिर विचार आया-एक चीज चोरी चली गई तो? तो दूसरी काम में आयेगी, यह सोच कर हरेक चीज दोहरी बांध ली।
इस प्रकार कल्पनाओं पर कल्पनाएँ करके आपने सामान का ढेर कर लिया और यह समझे, कि यह सब हमारी आवश्यकताएं हैं। फिर आप वह सब सामान लाद कर चले तो क्या आप सुखपूर्वक यात्रा कर
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