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________________ तृष्णा की आग | ५१ अपनी मौजूदा परिस्थितियों के अनुकूल अपने आपको ढालने का प्रयत्न कर रहा है । इसे भविष्य पर भी विश्वास होना चाहिए । और सन्त ने उससे कहा-अच्छा, रोटी का टुकड़ा मुझे दे दो। मैं तुम्हें राजा बना दूंगा। लड़के ने गौर से देखा। लड़के ने कहा-राजा बनाएँ या न बनाएं, टुकड़ा तो ले ही लीजिए । मैं तो बड़ी आशा लेकर यहां आया था; पर इस टुकड़े पर भी मुझे सन्तोष है । अगर आपको इसकी जरूरत है तो इसे आप ले लीजिए। मेरी चिन्ता जरा भी न करें। सन्त- तो दे दो। मैं तुम्हें राजा बना दूंगा। लड़का-आपकी इच्छा । लीजिए। लड़के ने रोटी का टुकड़ा सन्त को दे दिया । सन्त ने उसे अपने पास एक किनारे खड़ा कर दिया और कहा-तुम यहीं ठहरना ! अभी तुम से कुछ कहना हैं। उसके बाद जो दूसरे आये, उनसे सन्त ने आधा-आधा टुकड़ा मांगा। किन्तु कोई देने को तैयार नहीं हुआ। आखिर फिर एक लड़का निकला। सन्त ने उससे भी आधा टकड़ा मांगा, और मन्त्री बना देने को कहा। लड़के ने कहा-आधा टुकड़ा देने में कोई हर्ज नहीं है । और उसने टकड़ा तोड़ कर आधा सन्त को दे दिया । उस लड़के को भी पहले वाले लड़के के पास खड़ा कर दिया गया। सब भिखारी चले गए तो सन्त ने राजा से कहा-राजा और मन्त्री दोनों के योग्य पुत्र मिल गए हैं। राजा में विराट भावनाएं होनी चाहिए, सर्वस्व त्याग करने की वृत्ति होनी चाहिए, और प्रिय से प्रिय वस्तु को न्यौछावर करने का हौंसला होना चाहिए। ये सब बातें इस लड़के में दिखाई देती हैं। रोटी का टकड़ा इसके लिए बड़ी चीज थी, इसका सर्वस्व था, परन्तु इसने बिना किसी आना-कानी के उसे त्याग दिया है। दूसरे भिखारी उसी टुकड़े पर अटके रहे । सोचने लगे, कि टुकड़ा दे देंगे, तो हम क्या खाएंगे । पर इसने ऐसा विचार नहीं किया। अतएव यह राजा बनने योग्य है। दूसरे लड़के की राजा बनने की भूमिका नहीं है, किन्तु उसने अपने हिस्से में से आधा टुकड़ा दे दिया है । मन्त्री बनने वाले में, राजा की . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003415
Book TitleAparigraha Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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