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________________ अनासक्ति : परम धर्म अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य तथा अपरिग्रह नामक इन पांच महाव्रतों की महत्ता को संसार का प्रत्येक जीवित-धर्म अपने सहज भाव से स्वीकार कर स्वयं में महान् गौरव का अनुभव करता है । और ये पाँच महाव्रत जैन-धर्म के तो मानों प्राण ही हैं । वास्तव में, इन्हीं पाँच तत्वों से जैन-धर्म का मूल रूप निर्मित हुआ है, और उसकी विराट् आत्मा इसी विराजमान है । अगर हम इन पाँच महाव्रतों में से एक भी व्रत को भूल जाते हैं, तो सच मानिए, हम जीवनोन्नति के शिखर के सोपान पर अपने सुदृढ़ कदम नहीं रख पाते । हमारे कदम डगमगा जाते हैं, और हम आत्मा से परमात्मा नहीं बन पाते - जिसका अहर्निश गान करता हुआ, जैन-धर्म आज भी संसार में अपने विराट् रूप में जीवित है । में सन्मति ज्ञान पीठ के मंत्री होने के नाते मुझे हर्ष ही नहीं, अपार हर्ष होता है, कि कविरत्न श्री मुनि अमरचन्द्रजी महा० को अमृतमयी वाणी, जो मरुभूमि के विराट नगर ब्यावर में प्रवाहित हुई, को लिपिबद्ध करा कर आज इस 'अपरिग्रह-दर्शन' के रूप में इस ओर की पाँचवीं पुस्तक भी पाठकों के समक्ष रख सकने में, मैं समर्थ हुआ हूँ 'अहिंसा-दर्शन', 'सत्य-दर्शन', 'अस्तेय-दर्शन' और 'ब्रह्मचर्य - दर्शन' क्रमश: इस ओर की चार पुस्तकें पाठकों के कर-कमलों में पहले ही पहुँच चुकी हैं और यह सौभाग्य का विषय है, कि सभी धर्मों के अनेक प्रेमी-पाठकों ने कविश्री की वाणी की और सन्मति ज्ञानपीठ के इस प्रयत्न की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। विश्वास है, इस ओर की यह पाँचवी पुस्तक 'अपरिग्रह-दर्शन' भी खात्म-दर्शन के प्रेमी पाठकों को उतनी ही हृदय ग्राही एवं लाभप्रद जान पड़ेगी, जितनी कि उपर्युक्त चारों पुस्तकें | आशा है, सहृदय पाठक इस पुस्तक की महत्ता को स्वीकार कर मुझे आभारी करेंगे । अपरिग्रह दर्शन का यह द्वितीय संस्करण, पाठकों के कर-कमलों में समर्पित है । Jain Education International विनीत : ओम प्रकाश जैन मन्त्री : सन्मति ज्ञान पीठ, आगरा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003415
Book TitleAparigraha Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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