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________________ जीवन और संरक्षण | १४३ की स्थापना की ओर कदम बढ़ाया था। राष्ट्रपति याह्या खाँ ने चुनाव से पूर्वं वायदा किया, कि चुनाव के बाद सैनिक शासन समाप्त कर दिया जायगा और जनता के चुने प्रतिनिधियों के हाथों में पाकिस्तान का शासन सौंप दिया जाएगा। इसी सन्दर्भ में जब बंग बंधु मुजीब के दल ने स्पष्ट बहुमत प्राप्त कर लिया, तो याह्या खाँ ने उन्हें पाकिस्तान का भावी प्रधानमन्त्री कहकर सम्बोधित भी किया था । किन्तु जल्दी ही सत्ता लोलुप निरंकुश फौजी जनरलों के हाथों में खेल गए । और समझौता बार्ता का नाटक खेलते-खेलते शक्ति संग्रहकर अचानक निरपराध जनता पर आक्रमण कर खून की होली खेलनी शुरू कर दी । पागलपन की भी एक सीमा होती है, किन्तु मालूम होता है - पाकिस्तान ने मन-मस्तिष्क - विहीन शासकों में इसकी भी कोई सीमा रेखा नहीं है। छह सूत्री कार्यक्रमों की सार्वजनिक घोषणा के आधार पर जिसने चुनाव लड़ा और भारी बहुमत से विजयी हुआ, फलस्वरूप जिसे पाकिस्तान का भावी प्रधानमन्त्री कहा जाता रहा, वह एक ही रात में देशद्रोही हो गया, गद्दार हो गया और अब उसके लिए गुप्त सैनिक अदालत में इन्साफ का ड्रामा खेलकर फाँसी का फंदा तैयार किया जा रहा है । विबेक भ्रष्टों का यह पतन है, जो शत- सहस्रमुख होता है, जिसकी सीमा रेखा नहीं होती । - आश्चर्य है नाम मात्र की हलचल के बाद विश्व के बड़े-बड़े राष्ट्र चुप हैं। इससे भी अधिक आश्चर्य है, उन अहिंसा, दया और करुणा के उद्घोषक धर्म गुरुओं पर, जिनकी दृष्टि में जैसे कुछ हो ही नहीं रहा है । कहाँ है वह अहिंसा, कहाँ है वह करुणा, कहा है वह मानवता, जिसके ये सब दावेदार बने हुए हैं। क्या धर्म मरने के बाद ही समस्याओं का समाधान करता है ? इस धरती पर जीते जी कोई समाधान नहीं है, उसके पास ? मानव ने दानव का रूप ग्रहण किया । अहिंसा पर नए सिरे से विचार करने का अवसर आ गया है । लगता है, अहिंसा के पास करने जैसा कुछ नहीं रहा है । वह सब ओर से सिमटकर एक 'नकार' पर खड़ी हो गई है । नकार की अहिंसा में प्राणवत्ता नहीं रहती, वह निर्जीव हो जाती है । अहिंसा का अथ अब हिंसा न करना है, वह भी एकांगी, स्थूल दिखावा भर, साथ ही तर्कहीन । जीवन चर्या के कुछ अंग ऐसे हैं, जिसमें से तो अहिंसा जैसा लगता है, किन्तु अगल बगल को अन्दर की पृष्ठभूमि में झाँककर देखें, तो हिंसा का नग्न नृत्य होता नजर आता है। दूसरी ओर अहिंसा, हिंसा को सहने भर के लिए हो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003415
Book TitleAparigraha Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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