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________________ १४२ / अपरिग्रह-दर्शन रोध के लिए एकजुट हो जाए। पाकिस्तान की अक्ल ठिकाने पर लाने के लिए कुछ और विशेष करने की अपेक्षा नहीं है। अपेक्षा है केवल सामूहिक रूप में नैतिक आक्रमण की, असहयोग की । पाकिस्तान को जो विश्व के राष्ट्रों से सहयोग मिल रहा है, शस्त्रास्त्र और आर्थिक रूप में, यदि वह बन्द कर दिया जाए, तो पाकिस्तान तत्काल घटने टेक सकता है। किन्तु खेद है, यह कुछ हो नहीं रहा है। धरती पर के अनेक राष्ट्र केवल अपने स्वार्थ की भाषा में ही सोचते हैं. मानवता की भाषा में नहीं। विश्व के मानवतावादी बड़े-बड़े राष्ट्र यह सब अत्याचार मुदी आंखों से देख रहे हैं, बहरे कानों से उक्त काले कारनामों की कथा सुन रहे हैं। रोज समाचार पत्रों के पृष्ठ के पृष्ठ रंगे होते हैं, कि बांगला देश में जघन्य हत्याकाण्ड हो रहे हैं, मानवता को लजा देने वाले अत्याचार हो रहे हैं. फलस्वरूप अपनी जान और इज्जत बचाकर भारत में लाखों ही स्त्री-पुरुष, ब ढे-बच्चे शरण के लिए आ गए है, अब भी आ रहे हैं। किन्तु बड़े राष्ट्र हैं, कि देखकर भी अनदेखा कर रहे हैं। सुनकर भी अनसुना कर रहे हैं। ऐसा भी नहीं, कि चुप होकर निरपेक्ष बैठे हैं । अपितु विपरीत दिशा में चल रहे हैं । अमेरिका जैसा महान राष्ट्र एक ओर भारत में आए पीड़ित बंगाली प्रवासियों के लिए लाखों डालर की सहायता दे रहा है, और दूसरी तरफ यह खबर भी है, कि अमेरिका, पाकिस्तान को शस्त्रास्त्रों से लदे जहाज भेज रहा है, भयानक हथियारों की मदद दे रहा है। ताज्जुब है, कि एक ही देश एक तरफ घातक हथियार देकर नर-संहार को बढ़ावा देता है, और दूसरी तरफ वही देश जान बचाकर भारत में भागकर आए शरणार्थियों की रक्षा के लिए धन प्रदान कर सहायता का हाथ बढ़ाता है ? यह कैसी विचित्र विसंगति है। चाहिए, तो यह था, कि शस्त्रास्त्रों की सहायता तत्काल बन्द कर सर्वप्रथम पाकिस्तान की सैनिक जुटा को होश में लाया जाता, उसके क्रूर इरादों को बदला जाता, पाश्चात्ताप के लिए मजबूर किया जाता, और बांगला देश की पीड़ित जनता के अधिकारों का उचित संरक्षण किया जाता। फिर प्रवासी समस्त लोगों की जान-माल की रक्षा का प्रयत्न किया जाता, और उन्हें जल्दी ही अपनी प्रिय जन्म-भूमि में वापस भेजा जाता। कहने की बात नहीं, कि बंगबन्धु मुजीब को बांगला देश की करोड़ों मुस्लिम, ईसाई, हिन्दू, बौद्ध जनता ने अपना नेता चुना था, मुजीब के आवामी दल को अपना पूर्ण समर्थन प्रदान कर बांगला देश में लोकतन्त्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003415
Book TitleAparigraha Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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