________________
इच्छाओं के द्वन्द्व का समाधान | १३३
राजा चेटक का दोहिता। वह भगवान महावीर का भक्त भी था। जैन इतिहास में वर्णन आता है, कि उसने अपने राज्य में इस प्रकार का एक विभाग खोला था, जिसमें बड़े-बड़े वेतनधारी पुरुष नियुक्त किए गए थे। वे भगवान महावीर का प्रतिदिन का सुख-संवाद प्रातः काल तक सम्राट के पास पहुँचाते थे । जब तक भगवान का समाचार नहीं मिल जाता था, तब तक वह अन्न जल नहीं लेता था। इतना बड़ा श्रद्धालु और भक्त होते हुए भो वह एक बहुत बड़ा महत्वाकांक्षो सम्राट् था। प्रारम्भ से ही वह एक विलासी एवं उद्दण्ड प्रकृति का युवक था। उसका एक छोटा भाई था। एक दिन उसको महाराना पद्मावतो का मन ललचा जाता है, देवर के सेचनक हाथी और हाय के ऊपर । वह सम्राट से आग्रह कर बैठती है, कि जब तक यह हाथो और हार हमें प्राप्त नहीं होता है, तब तक यह विशाल साम्राज्य बेकार है। यह विशाल वैभव व्यर्थ है। पत्नी के आग्रह और मोह के सामने वह अपना कर्तव्य तथा नीति भूल गया। मोह का उदय होने से विवेक नष्ट हो ही जाता है। संसार में जितने भी अनर्थ हए हैं, होते हैं, और होंगे, उन सब के मूल में यही आग्रह और मोह रहता है । कूणिक ने भी बिना कुछ इधर-उधर सोचे भाई से हार तथा हाथी की मांग कर दी। हालाँकि यह एक अनुचित बात थी।
कोई भी संसारी व्यक्ति यों ही सहसा अपने अधिकारों का, अपनी प्रिय वस्तुओं का त्याग कैसे कर सकता है। कोई लाखों वर्षों में एक-आध भीष्म या राम ही ऐसा अवतरित होता है, जो दूसरों के सुख के लिए अपना साम्राज्य, अपना सर्वस्व बलिदान कर डालता है। राजकुमार, सम्राट् कूणिक को यह अनुचित मांग सुनकर स्तब्ध रह गया । यहां रहने में अब कुशल नहीं है-यह सोचकर चुपचाप नाना के शरण में वैशाली चला गया। कूणिक ने चेटक के पास दूत भेजकर राजकुमार, हार तथा हाथी को लोटा देने का प्रस्ताव भेजा। चेटक राजा कणिक के इस अन्याय-यूक्त प्रस्ताव का प्रतिवाद करने को तैयार हो गया। उसने कहलाया-इतने विशाल साम्राज्य से भो तुम्हारी आकांक्षाएँ भरी नहीं, तुम जो अपने भाई का अधिकार भी हड़पने को दुश्चेष्टा कर रहे हो, यह अन्याय है। वैशाली का गणतन्त्र सदा न्याय का पक्ष लेता रहा है। वह शरणागत-रक्षक है। अतः वह स्वप्न में भी शरण में आए हुए को लौटाना नहीं जानता।
बस फिर क्या था ? दोनों तरफ युद्ध की रणभेरियां बज उठीं। कूणिक युद्ध के मैदान में कूद पड़ा । उधर चेटक भी काशी-कौशल के अठा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org