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ज्ञान
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अभेद - दृष्टि
संसारी आत्माओं में जितना भी भेद है, वह सब कर्मोपाधि के कारण है । यदि निश्चय दृष्टि के द्वारा शुद्ध आत्म - स्वरूप का निरीक्षण किया जाए, तो भेद बुद्धि दूर हो जाती है और सभी आत्माएँ समान प्रतीत होने लगती हैं। सच्चा साधक भेद से अभेद में पहुँचता है, सब जीवों को अपने समान समझता है। और, जिस साधक ने यह अभेद - दृष्टि पा ली, फिर उसके लिए कैसा मोह ? कैसा शोक ? कैसा राग ? कैसा द्वेष ? अभेद-दृष्टि तो समता का अखण्ड साम्राज्य स्थापित करती है।
अन्तज्योति जगाओ
अपने अन्तर में जब अपने कल्याण और सुधार की प्रेरणा स्वयं जागृत होती है, तभी कुछ परिवर्तन हो सकता है, अन्यथा नहीं। ऊपर की कोई भी शक्ति किसी का बलात् हित-साधन नहीं कर सकती। आप देख सकते हैं कि पतंगे दीपक पर जल मरते हैं। दयालु पुरुष उन्हें बचाने के लिए कृपापूर्वक दीपक को बुझाकर
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