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उनका हित करना चाहते हैं, परन्तु पतंगे दूसरे दीपकों पर जल मरते हैं । बाहर के उद्धारकों का अवलम्बन करते समय प्रथम अपने अन्दर भी अन्तविवेक - कलिका का विकास प्राप्त करो। आँखें अन्धी हों, तो आकाश में लाखों सूर्य उदय हो जाएँ, तब भी क्या ?
स्वाध्याय आप जानते हैं, स्वाध्याय का क्या अर्थ है ? स्वाध्याय का अर्थ केवल कागजी पुस्तकें पढ़ लेना नहीं है। स्वाध्याय का अर्थ हैअपने अन्दर के जीवन की किताब का पढ़ना। 'स्वस्य स्वस्मिन् अध्यायः = स्वाध्यायः ।' अर्थात् अपने अन्दर अपना अध्ययन करना ही स्वाध्याय है। मनुष्य का सर्व-प्रथम कर्तव्य यही है कि वह अपने को जाने, अपने को परखे । 'मैं कौन हूँ, कहाँ से आया हूँ और क्या कर रहा हूँ ?' इन प्रश्नों का उत्तर जिसने जाना, वस्तुतः उसने ही सब-कुछ जाना। अपने अध्ययन के सिवा अन्य सब अध्ययन मूर्ख का प्रलाप है, अध्ययन नहीं । जो ग्रन्थ या शास्त्र आत्मा के अनुकूल हैं, जिनमें अन्दर के शास्त्र का प्रतिबिम्ब है, उनके अध्ययन को लोक - भाषा में स्वाध्याय कहा जाता है । परन्तु यह गौण है, और वह मुख्य ।
प्रगति का मार्ग मनुष्य की आत्मा नाम और रूप की माया से घिरी हुई है । आखिर, संसार है क्या ? कुछ नाम है, तो कुछ रूप है । विशुद्ध जीवन को बाँधने वाले इन खूटों को जड़-मूल से उखाड़े बिना मानवता को प्रगति के लिए मार्ग नहीं मिल सकता।
सुख और शान्ति सच्चा सुख और सच्ची शान्ति कहाँ है ? क्या वह बाहर के पदार्थों में है ? उनके योग - क्षेम में है ? नहीं, वह बाहर के सुख - साधनों के संग्रह और उनके योग पर निर्भर नहीं है।
अमर वाणी
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