SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महादेव का आदर्श सब लोग अमृत पीने की चिन्ता में हैं। किन्तु, मैं विष की चूंट पीकर अजर, अमर हो जाना चाहता हूँ। मुझे फूलों की शय्या नहीं, काँटों का पथ चाहिए । मैं प्रकाश की अपेक्षा अन्धकार में अच्छी तरह चल सकता हूँ । सुख के साधन मुझे पथ-विचलित कर देंगे, अतः मैं उनसे डरता हूँ। मुझे तो दुःख चाहिए दुःख, झंझावात - सा सनसनाता और दावानल - सा दहकता। जीवन - यात्रा पर चलते हुए दुःख निद्रा - मग्न नहीं होने देगा। हमेशा जागरण का सन्देश देता रहेगा। भगवान् कौन भगवान् वह, जो अपने विकारों से लड़ सके । केवल लड़ सके ही नहीं, विजय भी प्राप्त कर सके। और, वह विजय भी ऐसी विजय हो, जो फिर कभी पराजय में न बदले। भगवान् वह, जो संसार की अंधेरी गलियों में भटकता हुआ कभी मनुष्य बना हो। मनुष्य बनकर अपनी मनुष्यता का पूर्ण विकास कर पाया हो। मनुष्यता के स्वस्थ विकास की पूर्ण कोटि ही भगवान् का परम पद है । ___ क्या वह भगवान है, जो दुष्टों की दुष्टता का ही नहीं, अपितु दुष्टों का ही नाश करने के लिए अवतरित हुआ हो ? दुष्टता के नाश के लिए पहले दुष्टों का नाश करना, यह तो सभी दुनियादार लोग कर रहे हैं। इसमें भला भगवान् की क्या विशेषता ? भगवान् तो वह, जो दुष्टों का नाश नहों, प्रत्युत उनकी दुष्टता का नाश करे। दुष्टता को सज्जनता में परिणत करना, विष को अमृत में बदलना, यही तो है एकमात्र भगवान् की भगवत्ता ! महामानव : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003414
Book TitleAmar Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1988
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy