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________________ शहनशाह त्यागी ही विश्व में एकमात्र अभय है । वह तो वादशाहों का भी बादशाह है | भला उसे किस बात की परवाह ? किस बात की चिन्ता ? ऐसे ही फक्कड़ त्यागी के लिए एक सन्त ने कहा है "चाह गई चिन्ता मिटी, मनवा बेपरवाह । जिसको कुछ न चाहिए, सो ही शाहनशाह || " या तो स्वयं दूसरों के पीछे चलो अथवा दूसरों को अपने पीछे ले लो ! दोनों में से एक बात करनी ही होगी । यदि तुम्हें पीछे रहना पसन्द नहीं है और दूसरों को अपने पीछे चलाने की शक्ति नहीं है, तो फिर विचार करो, अफसोस किस बात का ? महत्ता का स्रोत महापुरुष लिखा- पढ़ा कर सिखा बताकर नहीं बनाए जाते ! वह महत्ता का अमर स्रोत तो उनके अन्दर ही छपा रहता है, जो समय पाकर अपने आप फूट निकलता है । गुलाब को खिलने की शिक्षा कौन देता है ? कोयल को पंचम स्वर में अलापना कौन सिखाता है ? कोई नहीं ! ४६ पीछे चलो, या चलाओ ? - मन की महानता मनुष्य का महत्त्व धन से बड़े होने में नहीं है, प्रत्युत दिल से बड़े होने में है । इसीलिए भारतीय संस्कृति के गायकों ने कहा है, 'मनस्ते महदस्तु ।' मनुष्य ! तेरा मन महान् होना चाहिए । अमर वाणी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003414
Book TitleAmar Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1988
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size6 MB
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